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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नाका नाल लखे नीक नाकंद जे हैं अमोलें ॥ खंडि के तारिका नाथी । -मालम -पद्माकर नादर-वि० [अ० नादिर] १. श्रेष्ठ, उत्तम २. नाका-संज्ञा, पु० [हिं० नाकना] प्रवेश-द्वार, अद्भुत, अजीव । अन्दर जाने का रास्ता, फाटक । उदा० आदर कै राखौं प्रान कैसे हक्म नादर लै उदा० ऐसो राज रसा महँ करै। जम के बिरादर ये बादर उनै रहै। भुमिया के नाके भुव धरै ॥ -केशव -नन्दराम नाकाधीस-संज्ञा, पु० [सं० नाक=स्वर्ग+ | नादौट-संज्ञा, स्त्री० [?] विशेष प्रकार की आधीश=स्वामी] स्वर्ग के स्वामी, इन्द्र। तलवार । उदा० सोने की सलाका सी सुनीं है हम साका । उदा. असिबर नादौ घलत न लौट मुंडनि मोट ऊधो, काम की पताका किधी नाकाधीस काटि करें। -पद्माकर परी है। -'हफीजुल्लाखाँ के हजारा' से जाफा--संज्ञा, पु० [फा० नाफा] कस्तूरी की माखना-क्रि० सं० [सं० नष्ट, प्रा० नंख] थैली, यह थैली कस्तूरी वाले मृगों की नाभि में छोड़ना, डालना २. रखना, पहनना ३. नष्ट मिलती है। करना । उदा० ग्यानिन को ध्यान, अरु ध्यानिन को ध्यान, उदा० भई हौ सयानी तरुनाई सरसानी प्रीति मान मानिन को मान, फार्थी मृगमद प्रीतम पत्यानी दूरि लाज उर नाखियों। नाफा सौ। -ग्वाल -मतिराम नायक-संज्ञा, पु० [सं०] पदिक, माला के मध्य २. गैयन की भीर हूँ जै संगबलवीर मेरे, का भूषण, हार के मध्य का रत्न । देखी तहाँ वीर चीर चंपक से नाखे उदा० नन्द-मन्दिर कान्त कौतुक बनि रह्यौ भरि चुन । -ग्वाल माव। मागबेलि-संज्ञा, स्त्री० [सं०] एक प्रकार का मनहु मधिनायक विराजत अति प्रभूत लोहा । जराव ॥ उदा० पाउँ पेलि पोलाद सकेलि रसकेलि किधौं -घनानन्द नागबेलि रसकेलि बस गजबेलि सी । नाय -संज्ञा, स्त्री० [सं० नायिका] स्वामिनी, -देव नागा-वि० [सं० नग्न] १. दूषित, बुरा २. लक्ष्मी, भगवान की पत्नी । अंझा, उदा० एक होत इन्दु, एक सूरज औ चन्द, एक उदा० नागा करमन कौं करत दुरि छिपि पीछे, होत है कुबेर, कछु बेर देत नाया के। -देव हरि मैं परत कै वे सूली मैं परत हैं। -सेनापति | नारि-संज्ञा, स्त्री० [सं० नाल] १. गर्दन, नाजिर-संज्ञा, पु० [अ० नाजिर], देख-भाल ग्रीवा, गला २. एक प्रकार की तोप ३. समूह, खानि । करने वाला, सरदार २. अन्तःपुर का प्रबन्ध उदा० सोचतें हिये में लाल लागी नारि है नई । करने वाली मुख्य परिचारिका [संज्ञा स्त्री०] उदा० १. नाजिर आनि दियो कर कागद भाजू आलम २. नारि कमान तीर असरार । कही उठि देर न लावै। - चन्द्रशेखर २. हाजिर पास खवास जे, जे नाजिर सब चहुँ दिसि गोला चले अपार ॥ -केशव धाम । सब मिलि देति, ममारषी, झुकि-झुकि ३. अति उच्च अगारनि बनी पगारनि जनु करें सलाम ॥ चिन्तामणि नारि । -केशव -चन्द्रशेखर नाल-संज्ञा, पु० [अ०] १. तलवार आदि के नाथना-क्रि० सं० [सं० नाश], नष्ट करना, भ्यान की साम जो नोक पर मढी रहती है २. समाप्त करना २. नत्थी करना ३. बैल आदि पास, निकट (पं०) की नाक छेद कर रस्सी डालना । उदा० दसहूँ दिसि जोति जगामग होति, अनूपम उदा० १. राघवराइ को दूत बली जिहि दूखन | जीगन जालन की। मनोकाम चूम के चढ़े For Private and Personal Use Only
SR No.020608
Book TitleRitikavya Shabdakosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKishorilal
PublisherSmruti Prakashan
Publication Year1976
Total Pages256
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size21 MB
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