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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir निजु ( १३८ ) निबरना चरण रज लीनी। -जसवंतसिंह । निधरे-वि० [हिं० निधड़क] निधड़क, निर्भीक, निजु-अव्य० [?] निश्चय ही।। निडर । उदा० निजु पाई हमको सीख देन । उदा० देव तहाँ निधरे नट की बिगरी मति को -केशव सिगरी निसि नाच्यो । -देव निझनक-वि० [?] १. अवधि, २, नीरव, निनद-संज्ञा, पु० [सं० निनाद] आवाज, ध्वनि । निर्जन । उदा० कहै पद्माकर त्यों निनद नदीन नित नागर उदा० अंजन दै री राधे न करि गहर हे हा हा। नवेलिन की नजर निसा की है । निझनक बार टरी जाति मनभावन ब्रज --पदमाकर मोहन मिलन-उमाहा । -घनानन्द निनवारना-क्रि० स० [सं. निवाररंग] सुलनिझकनि- वि० [प्रा० णिज्झरो=क्षया क्षय- झाना। __ कारी, दुखद, पीड़ित करने वाला। उदा० मकराकृत कंडल में उरझी जूलफ सूलफ उदा० निझुकनि रैनि झुकी बादरऊ झुकि आये, घुघुरारी । कोमल गोल कपोल परस कर देख्यौ कहाँ झिल्लिनि की झांई झहनाति है, सो राधा निनवारी। -बकसीहंसराज -आलम निनारा-वि० [सं० निन्+निकट] बिल्कुल, एक अबुध बुधनि में पढ़त ही निझुकत लक्षन- एकदम २. न्यारा, विलक्षण । हीन । भृकुटी अग्र खरग्ग सिर कटतु तथापि । उदा० १. ऐसोई जी हिरदै के निरदै निनारे हो अदीन। -केशव तो काहे कों सिधारे उत प्यारे परबीन निभूटी-वि० [प्रा० णिच्छूढ -निक्षिप्त] निर्गत -दास निष्कासित, निकाली गई । निपच्छ-वि० [सं० निः+पक्ष] जिसका कोई उदा० बंधन ते छूटी प्रेम बंधन बघटी, बित हित पक्ष करने वाला न हो, अनाथ, असहाय । चित लुटी सी, निभूटी सी झगरि कै। उदा० कहै पद्माकर निपच्छन के पच्छ हित पच्छि -देव तजि लच्छि तजि गच्छिबो करत हैं। निझझल-संज्ञा, पु० [निझोल] हाथी, गज । -पद्माकर उदा० निझझल कज्जल संजुत मिड्डि कै भालुक | निपजना-क्रि० अ० [सं० निष्पद्यते] उत्पन्न पिड्डि के भूमि गिराये। -दास होना, पैदा होना २. बढ़ना । निथंभ-संज्ञा, पु० [सं० स्तम्म] खम्भा, स्तम्भ ।। उदा० पेट परै को लखै फल ज्यौं निपजे हौ सपूत उदा० रची बिरंचि बास सी निथंभराजिका भली सु भागनि जागे । --घनानन्द जहाँ तहाँ बिछावने बने घने थली थली । । निपेटी- वि० [हिं० नि+पेटी=पेटू] भुक्खड़, -केशव अतिशय भूखा, पेटू । निथोरी–वि० [सं० निहिं० थोड़ा] अत्यधिक उदा. देखिये दसा असाध अँखियाँ निपेटिनि की, बहुत ज्यादा । भसमी विथा पै नित लंघन करति है। उदा० आई हो निथोरी बेस सेखर किसोरी बैस -घनानन्द थोरी रस बातन सनेह भीजियतु है। निबटे-वि० [सं० निपट] निपट, अत्यंत । -चन्द्रशेखर उदा० नये छैल निबटे आनंदघन करत फिरत निदंभ-वि० [सं० निर्दभ] घमंड,रहित, गर्वहीन प्रति ही बरजोरी। -घनानन्द उदा. प्रारंभित जोबन निदंभ करै रंभा रुचि निबरना-क्रि० अ० [सं० निवृत्त] छूटना, मुक्त रंभोरू सुगंभीर गुराई गुन भीर की। होना, छुटकारा पाना, निकलना, गुजरना २. -देव समाप्त होना, ३. दूर होना। निदाह-संज्ञा, पु० [सं० निदाघ] ग्रीष्म ऋतु, उदा० १. आस-पास पूरन प्रकास के पगार समै षट् ऋतुमों में एक ऋतु जो बसन्त के बाद पाती बनन अगार, डीठि गली ह्व निबरते । है, गरमी की ऋतु । -देव उदा० दास आस पास पुर नगर के बासी उत, २. बीति सब रैनि नभ निबरी तरैयां और माह हू को जानति निदाहै रहयो लागि । चहकी चिरैयाँ चारु बिधि लै प्रनंद -दास । की। -सोमनाथ For Private and Personal Use Only
SR No.020608
Book TitleRitikavya Shabdakosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKishorilal
PublisherSmruti Prakashan
Publication Year1976
Total Pages256
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size21 MB
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