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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir लौकिक उपकारी है जबकि गुरू लोकोत्तर उपकारी है। कहते भी है कि “गुरू बिना ज्ञान नहीं"। अपने उपकारियों के प्रति कृतज्ञता का भाव आने के बाद ही जीवन में धर्म का प्रारम्भ होता है। आर्यसुहस्तिसूरिजी महाराज ने भावि शुभ परिणाम को देखकर एक भिखारी को दीक्षा दी। उन्हें शिष्य की लालसा नहीं थी कि जो आये उसे मुंड दे, उस ज्ञानि गुरू ने भिखारी के उज्वल भविष्य को देखा होगा वर्ना वे इस तरह उसे दीक्षा नहीं देते। हम जैसे लोग होते तो जरूर कहते कि इन्हें शिष्य बनाने की कितनी लालसा है कि एक भिखारी को दीक्षा दे दी। अतिभोजन के कारण वे मुनि उसी रात्रि को समाधिपूर्वक संयम का अनुमोदन करते हुये काल धर्म प्राप्त कर गए और कुणाल के पुत्र रूप में पैदा हुए। बाल उम्र में ही संप्रति उज्जयिनी नगरी के राजा बनें। धीरे-धीरे संप्रति महाराजा युवावस्था को प्राप्त हुए। एक बार वे झरोखे में बैठकर नगर नजारे को देख रहे थे, तभी उन्होंने भव्य जुलुस के साथ नगर प्रवेश कर रहे आर्य सुहस्तिसूरिजी महाराज को देखा। आचार्य भगवंत को देखकर लगा कि मैंने इनको कहीं देखा है , मैंने इनको कही देखा है, यूं सोचते और उहापोह करते हुए जाति स्मरण ज्ञान उत्पन्न हुआ। उसने अपने उपकारी गुरूदेव को पहचान लिया। ओहो! गत जन्म में मैं भिखारी था और खाने के लिए ही दीक्षा ली थी, अब मैं इन्ही के प्रभाव से और इन्हीं के कारण एक राजा बना हूँ। संप्रति राजा तुरन्त ही महल में से नीचे उतरे। आचार्य भगवंत के चरणों में भाव पूर्वक प्रणाम किया। फिर बोले, हे प्रभो! क्या आपने मुझे पहचाना? उज्जयिनि के सम्राट संप्रति को कौन नहीं जानता है? आचार्यश्री ने कहा। इस रूप में नहीं, अन्य किसी रूप में! संप्रति ने पुछा। तत्क्षण आचार्य श्री ने श्रुतज्ञान के बल से सम्राट संप्रति के पूर्वभव को प्रत्यक्ष देखा और फिर बोले हां। अब पहचान लिया। गत जन्म में तुम मेरे शिष्य थे। तुरंत ही सम्राट संप्रति ने कहा गुरूदेव! आप ही के पुण्य प्रभाव से मुझे इस राज्य की प्राप्ति हुई है अतः यह राज्य मुकुट आपके चरणों में समर्पित करता हूँ। इसे ग्रहण कर आप मुझे कृतार्थ किजिये। आचार्य भगवंत -780 For Private And Personal Use Only
SR No.020580
Book TitlePriy Shikshaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasagar
PublisherPadmasagarsuri Charitable Trust
Publication Year2006
Total Pages231
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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