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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उपकार का बदला कभी चूकाया नहीं जा सकता। माता-पिता विद्या गुरू शेठ और धर्मदाता गुरू का हमारे पर महाउपकार होता है। इस जीवन में हम जो कुछ भी सुन्दर व श्रेष्ठ कार्य करते हैं, उनमें इन्हीं का मुख्य हिस्सा है। भौतिक देह के जन्मदाता माता-पिता है तो आध्यात्मिक देह के जन्मदाता धर्मगुरू हैं। अगर हममें कृतज्ञता हो, तो उनकी सेवा करनी ही चाहिए। माता-पिता हमें जन्म देकर पालन-पोषण करते है। सभी चिंताओं से मुक्त रखकर पढ़ाई-शिक्षण आदि की व्यवस्था करते है। खान-पान, कपड़े, मकान आदि जीवन की समस्त आवश्यकताओं की पूर्ति वे ही करते है। हमारे संस्कारों से लेकर जीवन की हर जरूरत (आवश्यकता) की चिंता वे ही करते है। बालक के शारीरिक व मानसिक विकास के लिए माता-पिता का पूरा-पूरा योगदान होता है। बालक की शारीरिक अस्वस्थता में जितनी चिंता माता-पिता करते है, उतनी और कोई नहीं करता है। पूर्वाचार्यों, महर्षियों का कथन हैं कि माता-पिता का जो उपकार है उसे किसी भी संयोग में हम चूका नहीं सकते हैं। इस प्रकार माता-पिता के हम पर अगणित उपकार है अतः उनके उपकारों को सदा याद रखना चाहिए और अपना कर्तव्य है कि तन-मन-धन से उनकी भक्ति सेवा चाकरी करे। आर्थिक दृष्टि से कमजोर हालत में थे तब मदद करने वाले मालिक (शेठ) का भी कम उपकार नहीं है। जिन्होंने हमें काम सिखाया, रोजगार दिया आगे बढ़ाया आर्थिक दृष्टि से सुदृढ़ बनाया उनका भी अवश्य ही उपकार मानना चाहिए। वो गुरू जिन्होंने हमें इस संसार के कीचड़ से बाहर निकालकर मोक्ष मार्ग दिखाया ऐसे उपकारी गुरू का कोई कम उपकार नहीं है। अक्षरज्ञान देने वाले विद्या गुरू का भी अपने पर उपकार कम नहीं है। ज्ञानाभाव के कारण नवजात शिशु का जीवन पशुतूल्य ही होता है। व्यवहारिक शिक्षण के बाद ही उसमें ज्ञान का प्रकाश और विवेक प्रगट होता है, क्योंकि ज्ञान से ही विवेक आता है जिससे कार्य अकार्य कर्तव्य अकर्तव्य का बोध होता है। जिसने माता पिता की सेवा की हो वही प्रायः गुरू की सेवा कर सकता है। अपनी आत्मा पर सर्वोत्कृष्ट उपकार धर्मदाता गुरू का है। माता-पिता For Private And Personal Use Only
SR No.020580
Book TitlePriy Shikshaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasagar
PublisherPadmasagarsuri Charitable Trust
Publication Year2006
Total Pages231
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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