SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 214
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir माननीय बनता है । वृद्धलोग आदरणीय होते है, अनुसरणीय होते हैं। एक राजा था उसके राज्य में कई बूढ़े और कुछेक जवान मंत्री थे, युवान मंत्रियों के मन में बूढ़े मंत्रियों के प्रति इर्ष्या थी। युवा मंत्रियों ने मिलकर राजा को शिकायत की कि बूढ़े मंत्री अब राज्य की देखभाल नहीं कर सकते क्योंकि वे बूढ़े हो गये है, अतः उन्हें निवृत्त कर देना चाहिए। राजा ने भी सभी वृद्धों को निकाल बाहर करने का निर्णय किया। बड़े लोग अपनी बुद्धि से कम दूसरों की बुद्धि से ज्यादा चलते हैं। और जहाँ दूसरों की बुद्धि से बिना सोचे समझे चला जाता हैं वहाँ मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। एक बूढ़े प्रधान मंत्री ने कहा आपकी बात ठीक है, परन्तु कल आप एक ऐसा प्रश्न पूछना, और उनके जवाब से बूढ़ों का निर्णय और मूल्य समझ में आये तो आपने निर्णय किया है उस पर पुनः विचार करना। बूढ़ा मंत्री बडा ही हुशियार, दीर्घअनुभवी और अतिबुद्धिशाली था अतः उसने सोचा अपनी बुद्धिमत्ता का उपयोग युवा मंत्रियों के सामने करना ही चाहिए। राजा ने दूसरे दिन की सभा में पूछा- यदि कोई व्यक्ति मेरी दाढ़ी खींचे तो उसे क्या सजा करनी चाहिए? या कोई व्यक्ति मुझे लात मारे तो उसे क्या सजा करनी चाहिए? प्रश्न सुनते ही सबसे पहले युवा मंत्री बोल उठे राजन! उस व्यक्ति का तत्काल शिरोच्छेद कर देना चाहिए। लोगों ने भी मृत्यु-दंड की सजा कही। फिर राजा ने अपने सबसे वृद्ध मंत्री को बुलाकर यही प्रश्न पूछा, उन्होंने कहा- राजन्! हम सोचकर जवाब देंगे। फिर सभी वृद्ध मंत्रियों ने विचारविमर्श किया और निर्णय लिया कि उसे सजा नहीं अपितु इनाम देना चाहिए सारी सभा स्तब्ध रह गयी कि ये बूढ़ा मंत्री क्या कह रहा है? राजा का जो अपमान करे उसे इनाम देने की बात कह रहा है! सचमुच इसकी तो सठिया गई है। बूढ़े मंत्री ने बात आगे बढाई और खुलासा किया आपको लात मारने की और दाढ़ी खींचने की किसकी हिम्मत है? या तो आपका लाडला राजकुंवर आपको लात मार सकता है या रानी लात मार सकती है, आपका छोटा राजकुमार ही आपकी दाढ़ी खींच सकता है। क्या कोई और खींच सकता है? तो वे दोनों इनाम के ही अधिकारी हुए न! अतः -2086 For Private And Personal Use Only
SR No.020580
Book TitlePriy Shikshaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasagar
PublisherPadmasagarsuri Charitable Trust
Publication Year2006
Total Pages231
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy