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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir समझने की शक्ति हैं। जो किसी घटना को गहराई से सोच सकता है। किसी कार्य का प्रारंभ करने से पूर्व ही जो उसके दीर्घ परिणाम तक का विचार कर सकता हैं, ऐसे बुद्धिशाली और विवेकी पुरूषों को वृद्ध कहा गया है, शारीरिक दृष्टि से तो "बीस से चालीस पेंतालिस वर्ष का व्यक्ति जवान कहलाता है, और “पचास सांठ" वर्ष के बाद का व्यक्ति वृद्ध कहलाता है। परन्तु यह तो युवा शरीर व वृद्ध शरीर की स्थूल व्याख्या हुई। सचमुच जवान तो वह है जिसमें कार्य करने के प्रति निष्ठा है। जिसमें आत्म विश्वास है वह जवान है। जो निर्भय है वह जवान है। जो आशा से भरा है वह जवान है। परन्तु जिसमें कार्य के प्रति किसी प्रकार की निष्ठा नहीं है, वह शरीर से जवान होते हुए भी वृद्ध/बूढ़ा ही है। जिसमें आत्मविश्वास का अभाव है वह नौजवान होते हुए भी बूढ़ा ही है। जो छोटी-मोटी कठीनाईयों से डरकर भाग जाता है वह पच्चीस तीस वर्ष का होते हुए भी वृद्ध ही है। जो एकदम निराशा और हताशा से भरा हुआ है, जिसमें कार्य करने का कोई उत्साह नहीं है, जिसे कार्य करने से पहले ही निष्फलता दिखती है, वह जवान शरीर में भी वृद्ध ही है। शरीर से कोई आदमी हमेशा जवान नहीं रह सकता है। उम्र-उम्र का काम करती है। शरीर के वृद्धत्व को रोकना किसी के बस की बात नहीं है। मन से जवान बने रहना तो किसी के भी बस की बात है न! आज कई जवान बूढ़े जैसे दिखाई देते हैं। जिन के पास मनोबल का सर्वथा अभाव है। वे छोटी-छोटी जरा-जरा सी कठिनाईयों से कमजोर व कायर हो जाते हैं। वैसी जवानी का क्या मतलब । जवान तो वह है जिसमें शौर्य है, उत्साह है, निष्ठा है, आत्मविश्वास है, जो दृढ़ मनोबली है। भौतिक दुनिया में भी सफलता पाने के लिए दिल की जवानी जरूरी है तो फिर आध्यात्मिक जगत् में सफलता प्राप्त करने के लिए तो वह जवानी और भी जरूरी है। जवान आदमी तो शायद खट्टा भी हो सकता हैं, तीखा भी हो सकता है किन्तु वृद्ध तो मीठा ही होता है। कच्चे आम खट्टे होतें हैं, परन्तु पके हुए आम तो मीठे ही होते है न? आदमी भी बड़ा होता है तो मीठा बनता है। जब वह मीठा बनता है तभी वह कुटुम्ब परिवार में आदरणीय और 2071 - For Private And Personal Use Only
SR No.020580
Book TitlePriy Shikshaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasagar
PublisherPadmasagarsuri Charitable Trust
Publication Year2006
Total Pages231
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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