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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आपकी दाढ़ी खींचने वाले को ज्यादा प्यार करना चाहिए। अपने से विपरीत जवाब सुनकर युवामंत्री सोच में पड़ गए। राजा भी खुश हो गए, किन्तु राजा ने अपनी गोद में बैठे हुए राजकुमार की तरफ ईशारा कर विशेषकर के युवा मंत्रियों से कहा, बोलो! मेरी दाढ़ी खींचने वाले राजकुमार का तुम्हारे मतानुसार तो शिरोच्छेद होना चाहिए न! मृत्यु दंड की सजा देनी चाहिए न। युवा मंत्री और सभाजन शर्मिन्दा हो गए। बूढ़े मंत्रियों को सेवा-निवृत्त करने की बात का निर्णय बदलना पड़ा। बूढ़े लोग तो चलता-फिरता पुस्तकालय है। जिस ज्ञान को पाने में वर्ष के वर्ष लग जाते है। वह ज्ञान एक ही वाक्य से देने की क्षमता उन वृद्धों में होती है। पचास-साठ वर्षों का अनुभव! इतने वर्षों का ज्ञान संग्रह । इतने वर्षों की परिपक्वता, इन सबका लाभ उनके अनुसरण से हम पा सकते हैं। कुछ कबूतर आकाश मार्ग से उड़ते हुए आगे बढ़ रहे थे। अचानक उन्होंने जंगल में जमीन पर बिखरे हुए दाने देखें। उन्हें देखते ही वे कबूतर ललचा गए, किन्तु एक अनुभवी वयोवृद्ध कबूतर ने कहा, इन दानों में लुभाने जैसा नहीं है, शायद किसी शिकारी ने हमें जाल में फंसाने के लिए ये दाने डाले होंगे। अतः इनसे दूर रहने में ही लाभ है। हम सभी के लिए वहाँ न जाना ही हितकर है। किन्तु उस वयोवृद्ध कबूतर की बात/सलाह किसी ने नहीं मानी, आखिर उसे छोड़कर अन्य कबूतर नीचे उतरे और तत्क्षण वे जाल में फँस गए। शिकारी ने आकर उन सभी कबूतरों को पकड़ लिया। जब कि वह वृद्ध कबूतर अकेला बच गया। देखा! वृद्ध कबूतर की बात/सलाह का अस्वीकार करने का परिणाम क्या आया। अज्ञात प्रदेश/जगह से गुजरते समय या तो हम अपने साथ में पथ-प्रदर्शक रखते है अथवा उनके द्वारा दिये गये निर्देशन के अनुसार आगे बढ़ते है। वन से भी यौवन का वन खतरनाक है। वन में भूला–भटका आदमी अगर मार्ग भूल जाये तो भी जहाँ-तहाँ, यहाँ-वहाँ भटक कर पुनः अपने स्थान पर आ सकता हैं, किन्तु यौवन में अगर भटक जाय तो उसका यह भटकाव उसके लिए खतरनाक ही बन जाएगा। अतः वृद्धों और सत्पुरूषों का मार्गदर्शन और अनुसरण जरूरी है। वृद्धों और सज्जनों का -209 For Private And Personal Use Only
SR No.020580
Book TitlePriy Shikshaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasagar
PublisherPadmasagarsuri Charitable Trust
Publication Year2006
Total Pages231
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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