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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रंगवाले हाथों से इनके कपड़े बिगड़ गये। रैदासजी को तो कुछ पता नहीं, परन्तु तुलसीदासजी को पता था कि खेस बिगड़ गया है और धोती भी रंगवाली हो गई है, इससे वे नाराज हो गये। घर पर आये। वे धोती और खेस धोने लगे, अपितु दाग मिटा नहीं। तुलसीदासजी कंटाल गये। उन्होंने एक नौकर से कहा- जरा इन कपड़ों को धो दो.... दाग निकल जाये वैसा करना..... | नौकर था अबुध-निरक्षर उसने कपड़े लिये और धोने लगा। किसी भी तरह से दाग जा नहीं रहा था। इस कारण से नौकर ने दाग पर अपनी जीभ घिसी-दाग को चूस लिया परन्तु दाग गया नहीं। पर एक चमत्कार हुआ। वह निरक्षर नौकर ज्ञानी बन गया। और ब्रह्मज्ञान प्राप्त हुआ। तुलसीदासजी ने यह चमत्कार देखा। अब तुलसीदासजी को रैदास के भक्ति रंग का महत्त्व समझ में आया। रैदास का भक्ति रंग कैसा था? वह रंग अनोखा था, उनके वहाँ गये। परन्तु रैदासजी में वैसा आनंद नहीं था, उल्लास नहीं था वे भेटे जरूर परन्तु दिल में आनंद-उमंग नहीं था। और उसी दिन से तुलसीदासजी ने वर्णभेद का त्याग किया, जाति भेद छोड़ा....... चमार क्या....... और ढेड़ क्या........ जो हरि को भजता है वह हरि का होता हैं। नरसिंह महेता भी ऐसे ही भक्त थे, उच्चकुल और नागर ज्ञाति के थे, परन्तु वे भजन करने के लिए ढेड़वाड़ भी जाते-जहाँ बुलाये वहाँ जाते, फिर बुलाने वाला किसी भी ज्ञाति का क्यों न हो....... रैदासजी ने कहा- तेरे दर्शन ही मेरा जीवन है, तेरे दर्शन के बगैर मैं कैसे जीऊंगा? "दरिसन तोराजीवनमोरा। बिनदरसन क्युंजीये चकोरा'॥ -155 - 155 - For Private And Personal Use Only
SR No.020580
Book TitlePriy Shikshaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasagar
PublisherPadmasagarsuri Charitable Trust
Publication Year2006
Total Pages231
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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