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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir है। एक बार ढब्बू को एक ऐसे मिजाजी मालिक के वहाँ नौकरी करने के दिन आ गये। मिजाजी शेठ की बात-बात में डाँटने की आदत थी। एक दिन ढब्बू को धमकाते हुए शेठ ने कहा- सुनो ढब्बू! इस घर में मेरी इजाजत के बिना एक तिनका भी आगे-पीछे नहीं हो सकेगा। अतः कुछ भी काम करने से पहले मेरी इजाजत लेनी जरूरी है। जो हुकम मालिक बोलकर ढब्बू माथा हिलाता हुआ रसोई घर में गया और तुरन्त बाहर आ गया। क्या हुआ? शेठ ने ढब्बू को तुरंत बाहर आया देखकर आदतन धमकाया। ढब्बू बोला शेठजी। रसोई घर में बिल्ली दुध पी रही है, अगर आपकी आज्ञा हो तो मैं उसे मार भगाउं । आज्ञाकारी ढब्बू ने सिर धुनाते हुए नम्रस्वर में शेठ से कहा। उपर वाले मालिक की आज्ञाओं का अर्थघटन करते समय अपने को भी कोमनसेन्स को रखना चाहिए। ___(4) असंग योगः परमात्मा के साथ एकमेक हो जाना । माँ खाना बना रही है, उसका छोटा बच्चा कमरे में घूम रहा है, खेल रहा है, वह खाना बनाती है लेकिन स्मण बच्चे की तरफ लगा रहता है, कि कहीं कमरे के बाहर तो नहीं निकल गया, वह नाम भी नहीं लेती रहती कि..... नाम नहीं लेती रहती, लेकिन स्मरण की धार बहती रहती है। एक अंतर्बन्धन संबंध बना रहता है लेकिन काम में लगी भी है, भीतर स्मण है, बच्चा कहीं गया तो नहीं सामान तो अपने उपर नहीं गिरा लेगा। हाथ पैर तो नहीं तौड़ लेगा। ऐसा भाव बना रहता है, भक्त के हृदय में यही भाव बना रहता है, बैठो, उठो, चलो, सोओ, जागो उसका भान न भूले अहर्निश स्मरण की धारा बहती है। एकमेक हो गए, हरदम उन्हीं में खोकर रहना, काम कुछ भी भीतर उसी का स्मरण उसे भूल नहीं पाये। चमार रैदास और तुलसीदासजी परम मित्र थे। दोनों प्रभु भक्त । दोनों प्रभु के पक्के मित्र । एक दिन तुलसीदासजी रैदास के वहाँ गये। रैदास चमड़ा रंग रहे थे चमड़ा रंगते-रंगते ही उन्होंने तुलसीदासजी को गले लगा लिया। तुलसीदासजी ने उस दिन नया खेस और नई धोती पहनी थी। रैदासजी के 154 For Private And Personal Use Only
SR No.020580
Book TitlePriy Shikshaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasagar
PublisherPadmasagarsuri Charitable Trust
Publication Year2006
Total Pages231
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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