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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चौबीसी के प्रारम्भिक स्तवन में कहा है। . जगजीवन जगवाल हो, मरूदेवानो नंद लालरे। मुख दीठे सुख उपजे, दरिशन अतिही आनंद लालरे॥ जगत के जीवन, जगत के प्रियतम मेरे प्रियतम है, जो मरूदेवी के लाल है। मुझे उनकी सुरत देखने से सुख मिलता है, और दर्शन से अपार आनंद मिलता है। देवचन्द्रजी पूज्य आनंदधनजी और पूज्य यशोविजयजी हमें स्तवन के द्वारा यही कह रहे हैं कि- परमात्मा को चाहो, दिल से चाहो, अंतःकरण से चाहो । प्रगति तभी होगी जब परमात्मा को चाहेंगे। प्रभु को चाहे बिना कोई भी अनुष्ठान तार नहीं पायेगा। आदमी के पास हृदय भी है तो वह बिना प्रेम के भी नहीं रह सकता और बगैर श्रद्धा के भी नहीं रह सकता, उसमें प्रेम भी है और श्रद्धा भी हैं परन्तु दिक्कत यह है कि उस के प्रेम पात्र और श्रद्धा के विषय भी बदलते रहते हैं। कभी माँ बाप पर कभी किसी पर तो कभी किसी पर । भक्तियोग वफादारी पूर्वक प्रभु को समर्पित रहना। एक आदमी को कार्य सिद्ध करना था। उसे एक अनुभवी ने सलाह दी। उस अनुभवी ने गणेशजी की आराधना करने को कहा। वह आदमी गणेशजी की पूर्ति ले आया और पूजने लगा। फिर दुबारा कोइ और कार्य आ गया। दुसरे अनुभवी ने सलाह दी कि शिवजी की आराधना करो। वह आदमी शिवजी की पूजा करने लगा। फिर तीसरी बार एक कार्य आ गया, तो तीसरे अनुभवी ने सलाह दी कि हनुमानजी की आराधना करो। तो वह हनुमानजी को तेल सिन्दूर चढ़ाने लगा। यूं अलग-अलग कार्य के लिए अलग-अलग देवी देवताओं को रीझाने लगा। उसके घर में सभी देवों की लाइन लग गई, उसने योग्य और यथास्थान पर उन्हें स्थापित कर दिया। देखकर ऐसा लगता है मानो देवी देवताओं की परिचर्चा (मिटिंग) हो रही हो, एक बार भयंकर संकट आ गया। वह बचाने के लिए गणेशजी को आजिजी करने लगा। गणेशजी ने शिवजी के पास जाने को कहा। शिवजी के पास गया तो शिवजी ने हनुमानजी के पास जाने को कहा। हनुमानजी के पास गया तो हनुमानजी ने काली के |152 For Private And Personal Use Only
SR No.020580
Book TitlePriy Shikshaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasagar
PublisherPadmasagarsuri Charitable Trust
Publication Year2006
Total Pages231
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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