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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चारों में सबसे महत्त्वपूर्ण प्रीति है क्योंकि प्रभु–प्रीति नींव है भक्ति आदि उस पर खड़ी हुई इमारत है। प्रीति दूध के समान है। यदि प्रीति नहीं होगी तो घी कहाँ से मिलेगा? वैसे प्रीति नहीं होगी तो परमात्मा के साथ एकता कैसी होगी? भक्ति मार्ग की पहली सीढ़ी प्रभु को चाहना..... प्रभु से प्रेम जगाना। बाकि सबकुछ अपने आप हो जाएगा। परिवार के लिए आपको प्रेम है और परमात्मा से प्रेम नहीं? सारी दुनिया से आपको प्रेम है और परमात्मा से ही प्रेम नहीं? जब तक सबसे प्रेम रहेगा तब तक परमात्मा से प्रेम नहीं हो सकता। दुनिया को चाहते है इसलिए परमात्मा को नहीं चाह सकते। प्रीति अनंती पर थकी, जे तोड़े होते जोड़े एह, जो संसार के प्रेम को वस्तुओं के प्रेम को तोड़ सकता है वही प्रभु के साथ प्रेम कर सकता है। परमात्मा से प्रीति यह साधना का पहला कदम है। श्री देवचन्द्रजी महाराज ने चौबीसी प्रथम स्तवन में परमात्म प्रेम की बात कही है ऋषभजिणंदशुंप्रीतडी, किम कीजेहो कहोचतुरविचार। प्रभुजीजई अलगावस्या, तिहांकणे नविहो कोई वचन उच्चार।। मुझे परमात्मा से प्रेम करना है, परन्तु होगा कैसे? मेरे परमात्मा तो सात राज लोक दूर बसे हैं। उनके साथ किसी तरह की बातचीत हो नहीं रही है। फिर किस प्रकार उनसे प्रेम करें? श्री आनंदधनजी महाराज ने भी चौबीसी के प्रथम स्तवन में कहा है। ऋषभजिनेश्वरप्रीतम माहरोरे, ओरन चाहुरेकंत। रीझयो साहिबसंगनपरिहरेरे, भांगे सादिअनंत।। प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव मेरे प्रियतम है। अन्य किसी प्रियतम को मैं चाहता नहीं हूँ क्योंकि प्रसन्न हुऐ मेरे ये प्रियतम कभी मुझे छोड़ते नहीं है या फिर उनका वियोग भी नहीं होता। अनंतकाल तक सदैव प्रभु साथ ही साथ जबकि दुनियावी प्रियतम छोड़ देते हैं, मृत्यु होने से भी वियोग होता है। ऐसे क्षण भंगुर प्रेम के लिए जिन्दगी क्यों बरबाद की जाय? पूज्य यशोविजयजी ने 151 - - For Private And Personal Use Only
SR No.020580
Book TitlePriy Shikshaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasagar
PublisherPadmasagarsuri Charitable Trust
Publication Year2006
Total Pages231
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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