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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मनुष्य चौबीसों घंटे शरीर परिवार की सेवा सुश्रुसा में लगा है। दिन रात संसार में रचापचा रहता है। अरे! जिसने तुझे सब कुछ दिया उसे तो धन्यवाद दे, उसके लिए तो कृतज्ञता प्रगट कर कल्याण मंदिर स्त्रोत्र में सिद्धसेन दिवाकरसुरिजी ने यही बात कही है। प्रभु मैने आपकी देशना बहुत बार सुनी है। मैने आपकी पूजा बहुत बार की है। मैंने अनेक बार आपके दर्शन किये हैं। परन्तु हे दयालु । मैंने भक्ति भावपूर्वक आपको कभी भी मेरे अंतस्तल में प्रतिष्ठित नहीं किया इसी कारण से मैं दुःखी रहा हूँ, इसी कारण से मेरे अनुष्ठान भी फलदायी नहीं बनते। सारमेतन्मया लब्धं श्रुताब्धेरवगाहनात्। भक्तिर्भागवतीबीजं परमानन्द सम्पदाम्॥ श्री यशोविजयजी उपाध्यायजी महाराज ने ग्रंथ में लिखा है कि भगवान की भक्ति समस्त आगमों का सार है, निचोड़ है। श्रुत सागर को पढ़कर, मंथन करके मैंने उसमें से अमृत पाया है कि प्रभु भक्ति से परमानंद की प्राप्ति होती है। अतः यह बात दिल में जमा लिजिये कि परमात्मा से अपार प्रीति, श्रद्धा/आस्था, बहुमान, सेवा भक्ति और आज्ञापालन से ही हमारा आत्मकल्याण होगा, आत्मा पर लगी हुई मलिनता साफ होगी और मोक्ष के निराबाध सुख की सहजता में प्राप्ति होगी। पूज्य आचार्य श्री हरिभद्रसूरिजी महाराज ने भक्ति मार्ग के यात्रियों के लिए चार सोपान (योग) बताये हैं। (1) प्रीती योगः परमात्मा को चाहना । (2) भक्ति योगः वफादार बनकर परमात्मा (प्रभु) को सदैव समर्पित रहना। (3) वचन योगः परमात्मा की आज्ञा को शिरसावंद्य करना। (4) असंग योगः परमात्मा के साथ एकमेक हो जाना। (1) यह प्रेम की निशानी है कि आदमी जिसे चाहता है उसे समर्पित हो जाता है। जिसे समर्पित होता है, उसी की बात मानता है। जिनकी बातों को वह मानता है उन्हीं के साथ वह एकमेक हो सकता है और उन्हीं का वफादार बनकर रहता है। दुनियावी प्रेम का यही क्रम है। यही क्रम प्रभु के प्रेम में हैं। अपना जो दुनियावी प्रेम है उसे परमात्मा की तरफ मोड़ने की जरूरत है। इन 1501 For Private And Personal Use Only
SR No.020580
Book TitlePriy Shikshaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasagar
PublisherPadmasagarsuri Charitable Trust
Publication Year2006
Total Pages231
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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