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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धातु की रचना ही ऐसी है कि यदि उसमें विषमिश्रित चीज रखें तो तत्काल ही उस डिस से तड़..... त.....त......... आवाज होने लग जाती है क्योंकि वह धातु विष को सह नहीं पाती है। ऐसा होने से रजवाड़े को अपने साथ होने वाले षड़यन्त्र की खबर हो जाती। अपनी आत्मा इस डिस जैसी होनी चाहिए, इस में विषय-कषाय, पाप, बुराई का जहर गिरे कि वह कांपने लगे, उसे दुःख होने लगे। इन सब के प्रति धिक्कार भाव के बिना ऐसी कंपन कभी आ नहीं सकती। पपिते जैसा भय-डर होना चाहिए। एक थे पपिता भीरू शेठ । शेठ को पेट की सख्त पीड़ा के कारण वैद्य ने दवाई दी। और साथ ही दहीं न खाने की सख्त मनाई भी की। परन्तु बेचारे शेठ ने एक बार आखिर दहीं खा ही लिया। वे अपनी दही खाने की इच्छा को रोक नहीं पाये। परिणाम स्वरूप। उस रात को उन्हें असह्य पीड़ा होने लगी। तड़प तड़प कर मुश्किल से रात गुजारी। सुबह फिर वैद्य को दिखाया। दुबारा वैद्य ने दवाई देने के साथ ही शेठ को यह भी कहा कि अब पपिता मत खाना। दहीं खा लेने की गल्ति से शेठ के पेट में जो पीड़ा उठी थी, वह इतनी असह्य थी कि वे अब पपिता को खाने के लिए ललचाएं नही। इतना ही नहीं, परन्तु कभी सपने में भी पपिता देख लेते तो जोरों से चिल्ला उठते। कुछ भी हो कषाय–विषयादि के विसर्जन बिना ही धर्म क्रियाएँ सद्गति दे सकती है, परन्तु मोक्ष नहीं दे सकती। वही धर्म क्रियाएँ मोक्षप्रद बन सकती हैं जिन्हें करने वाले के हृदय में कषायादि के प्रति धिक्कार ठूस-ठूस कर भरा हो। स्वेच्छा से जो दमन और विसर्जन नहीं करता उसे दूसरे के दबाव से दमन और विसर्जन करना पड़ता है। कितना अच्छा होगा अगर हम समझकर, ज्ञान पूर्वक दमन और विसर्जन करते! हम नरक में थे तब परमाधामी ने हमारा बहुत ही दमन किया है। घोड़े के भव में घुड़सवार ने, गाय, भैंस, बेल के भव में किसान ने, हाथी के भव में महावत ने, पेड़ पौधों के भव में हवा और आग ने, मनुष्य के भव में शेठ ने, सैनिक थे तब सेनापति ने, सेवक थे For Private And Personal Use Only
SR No.020580
Book TitlePriy Shikshaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasagar
PublisherPadmasagarsuri Charitable Trust
Publication Year2006
Total Pages231
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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