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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रत्या श्रीयशो 15 एत्थ य पच्चक्खाणे आगारा अट्ट अहव नव हुंति । विगइविसेसोवेक्वा तेसि विभागो इमो नेओ ।। २०२॥ निविकृतिदेवीये नवणीओगाहिमए अहवदाहिपिसियवयगुलेसुं च । नव आगारानेया उक्वित्तविवेगसंभवओ ॥२०३।। खीरमहुम ज्जतेल्ले दवेसु घयपिसियदहिगुलेसुंच । अट्ठेव य आगारा उक्वित्तविवेगऽभावाओ॥ २०४ ॥ अन्नयरविगइनियमो ख्यान स्वरूपे | निश्विययं भण्णए तओ कुणइ । अद्दवविगइविवज्जी उक्खित्तविवेगमागारं ।।२०५।। इयरो न तमुच्चारइ वयण प्पामन्नओ भणंतेगे । अन्ने भणंति एवं वियारमेत्तं मुणेयव्वं ।। २०६ ॥ तो सव्वविगइचाई असव्वचाई य उच्च॥१८॥ रह एयं । जह भगवइजोगो जई गिहत्थसंसहपभिईयं ।। २०७॥ सूत्रं चेदम-निविगइयं पच्चक्खाइ अन्नत्थऽणाभोगणं सहसागारेण लेवालेवेणं गिहत्थसंमट्टणं उक्खित्तविवेगेणं पडुच्चमाक्खएणं पारिद्रावणियागारेणं महत्तरागारणं सव्वसमाहिवत्तियागारेणं वोसिरह ॥ वक्खायं चिय एयं नवरि विसेसो मिहत्थसंसट्टे । गिहिणा नियकज्जेणं संसट्टो ओयणो पयसो ॥ २०८॥ तं जइ तमइक्कमिउं उक्कोसेणंगुलाणि चत्तारि । उवरिं वदृइ तइया न तयं दुद्धं भवे विगई ।। २०९॥ पंचमगे पारद्धे नियमा विगई अणेण नारण । दहिवियडमाइयाउवि भणियमिणं जेण सुत्ताम्म ॥ २१ ॥ खीरदहीवियडाणं ॥१८॥ चत्तारि उ अंगुलाइ संसह । फाणियतेल्लघयाणं अंगुलमेगं तु संसटुं ॥ २११ ।। महुपोग्गलरसयाणं अद्वंगुलगं तु For Private and Personal Use Only
SR No.020579
Book TitlePratyakhyan Swarupam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhdev Keshrimal Jain Shwetambar Sanstha Ratlam
PublisherRushabhdev Keshrimal Jain Shwetambar Sanstha Ratlam
Publication Year1927
Total Pages120
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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