SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 22
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री यशोदेवीये प्रत्याख्यान स्वरूपे ॥१९॥ | होइ संसटुं । गुलपुग्गलनवणीयं अद्दामलगं तु संसर्ट ॥ २१२ ॥ आद्रोमलक-पीलूमयूरः इति सम्प्रदायः । अइरु- विकृतिप क्खमंडगाई पडुच्च जं मक्खियं व पडिहाइ । तं पडुच्चमक्खियं खलु मविश्वय आभासमिइ भावो ॥२१३।। जइरिमाणव्य| अंगुलीए घेत्तुं घयतेल्लाईहिं मंडगाईयं । मक्खइ तइया कप्पइ धाराए न कप्पइ अणुंपि ॥२१४।। निव्विगइयभणणाओ शुनसार्ध | विगइपमाणंपि एत्थ न विरुद्धं । अपमायवुड़िहेउत्तणेण आयरणओ चेव ।।२१।। एत्तोच्चिय सुत्तेसु चउहाहा- पौरुष्य | रस्स विरइभणणेऽवि । दुविहतिविहस्स करणं न विरुद्ध पोरिसाईसुं ।। २१६ ।। एगासणसुत्तेणं बेयासणगंपि एत्थ | पार्थसिद्धिः न विरुद्धं । आसणधणिसाहम्मा विगई परिमाणकरणं च ।। २१७ ।। अन्नं च इमं भणियं पयर्ड गिहिदेससह | जम्हा । तम्हा गहणे सुत्तं एयस्सवि किंपि दब्वं ॥ २१८ ।। न य वच्चमभिग्गहियं सुत्तं एयस्स चउब्विहागारं ।। जेणेगासणगेणं समजोगवममेयंपि ॥ २१९ ॥ एवं पुरिमड्डेणं अवड्डमवि सूइयं मुणेयव्वं । जम्हा महानिसीहे | तयंपि भणियं फुडं चेव ।। २२० । इय सङ्कपोरिसीविय पोरिसिसुत्तेण सूइया चेव । न य पुण कत्थवि विट्ठा गंभीरं नवरि जिणवयणं ॥ २२१ ॥ भणिओ सुत्तवियारो पइसुत्तं तत्थ देसियागारा । तेसिभिहाणम्मि पुणो । कारणमिणमो मुणेयव्वं ॥ २२२ ।। वयभंगे गुरुदोसो थेवस्सवि पालणा गुणकरी ओ । गुरुलाघवं च नेयं धम्मम्मि अओ उ आगारा ॥ २२३ ॥ जहगहियपालगणं अपमाओ सेविओ धुवं होइ । सो तह सेवितो वह ॥१९॥ इयरं विणासेइ ॥ २२४ ॥ अब्भत्थो य पमाओ तत्तो मा होज्ज कहवि भंगोत्ति । भंगे आणाईया तओ य सव्वे अणत्थत्ति ।। २२५ ।। (अत्राह परः)-एवं पमाइणो कह पव्वज्जा होइ (गुरुराह) चरणपरिणामा । न य तस्स For Private and Personal Use Only
SR No.020579
Book TitlePratyakhyan Swarupam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhdev Keshrimal Jain Shwetambar Sanstha Ratlam
PublisherRushabhdev Keshrimal Jain Shwetambar Sanstha Ratlam
Publication Year1927
Total Pages120
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy