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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यबुद्धीए विगवाणं तओविसेसेणारे नालिएरे य21. श्री पुण हुंति लेवकडा ॥१८८॥ एमेव बयर रायण वारंग कविट्ट अंबजंबीरे । टिंबरुय चारुकयले बिजउरे नालिएरे य | इन्द्रियजययशोदेवीये ॥१८९॥ नवरं इह परिभोगो निम्विइयाणंपि कारणावरखो। उक्कोसगदब्याण तओ विसेसेण विन्नेओ॥१९०॥ आव-निdिiaप्रत्या- ननिविगइयस्स असहुणो जुज्जए परीभोगो । इंदियजयबुद्धीए विगईचायम्मि नो जुत्तो ॥१९१॥ जो पुण विगई- के न विकख्यान | चायं काऊणं खाइ निद्धमहराह । उकोसगव्वाणं तुच्छफलो तस्स सो नेओ ॥१०२॥ दीसंति य केह इहं पच्चक्खा- तिगतानि स्वरूपे का एवि मंदधम्माणो । कारणियं पडिसवं अकारणेणावि कुणमाणा ॥ १९३ ॥ तिलमोयगतिलवहिं वरिसोलगनालि केरखंडाई । अइबहलघोलखारं घयपप्पुयवंजणाई च ॥ १९४ ॥ घयवुडमंडगाई दहिदुद्धकरंवपेयमाईयं । झल्लरिहै|चूरिमपमुहं अकारणे केइ भुंजंति ।। १९५ ।। न य तंपि इह पमाणं जहुत्तकाराण आगमन्नूणं । जरजम्ममरणभाभीसणभवन्नवुब्बिग्गचित्ताणं ॥१९६।। मोत्तुं जिणाणमाणं जियाण बहुदुहदवग्गितवियाणं । न हु अन्नो पडियारो कोइ इहं भववणे जेण ॥ १९७ ॥ विगई परिणइधम्मो मोहो जमुदिजए उदिन्ने य । सुझुवि चित्तजयअपरो कहं अकज्जेन वहिहि ॥ १९८ ॥ दावानलमज्झगओकोतदुवसम्मट्टयाए जलमाई। संतेविन सेविज्जा? मोहानलदीविए उवमा ॥ १९९ ।। तथा-विगई विगईभीओ विगइगयं जो उ भुंजए साह । विगई विगइसहावा विगई विगई बला नेइ ॥ २००॥ विकृति-चेतोविकारमाश्रित्य विगतिभीत:-कुगतित्रस्तो विकृतिगतं-क्षीरादिविकृतिजातं यो भुङ्क्ते साधु-1 | विकृतिः-क्षीरादिका विकृतिस्वभावा-चेतोविकारकरणशीला अतो विकृतिः--क्षीरादिका विगाते-कुगतिं बलानयतीति । ॥१७॥ इय दोसकरिं नाउं वयंति धीरा इमं जहासतिं । महुमज्जमावणाई मंस च विसेप्तओ निच्चं ॥२०१ ॥ CCCTOR For Private and Personal Use Only
SR No.020579
Book TitlePratyakhyan Swarupam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhdev Keshrimal Jain Shwetambar Sanstha Ratlam
PublisherRushabhdev Keshrimal Jain Shwetambar Sanstha Ratlam
Publication Year1927
Total Pages120
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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