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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६८६ प्रश्नव्याकर णसूत्रे याए ' अलीकवचनविरमणपरिरक्षणार्थम्-मृपावादविरमणव्रतपरिरक्षणार्थ सन्ति । तासु ' पढमं ' प्रथमां समितियोगलक्षणां भावनामाह-'सोऊण' श्रुत्वा-सुगुरु समीपे समाकर्ण्य, तथा-' परमहूँ ' परमार्थ-परमतत्त्वं पथप्नभावनारहस्यं ' संवरहें' संवरार्थ-संवरस्य-मृषावादविरतिलक्षणस्य अर्थ प्रयोजनं-मोक्षलक्षणम् , अथवा-संवरः कर्मनिरोधएव अर्थः प्रयोजनं यस्य स तं तथोक्तम् , यद्वा-संवरस्य= प्रस्तुतसंवराध्ययनस्य अर्थवाच्यं 'मुटु' सुष्टु-सम्यक जाणिऊण' ज्ञास्या न-नैव 'वेगियं' वेगितं नदीप्रवाह बढेगयुक्तं वचनं वक्तव्यमित्यग्रेण सम्बन्धः, तथा-न नैव ' तुरिय' खरितं-वात्यावत् त्वरायुक्तं वचनचाञ्चल्यात् , न-नैव कहते हैं-' तस्स इमा' इत्यादि। टीकार्थ-(तस्स बीयस्स वयस्स इमा पंच भावणाओ ) उस प्रसिद्ध द्वितीय महाव्रत की ये वक्ष्यमाण पांच भावनाएँ ( अलियवयणवेरमण परिरक्खणट्टयाए ) उस अलीकवचन विरमणरूप सत्यव्रत की रक्षा के लिये हैं। उनमें (पढमं ) प्रथम भावना इस प्रकार है- (परमटुं संवरहें सोऊण) सुगुरु के समीप प्रथम भावना के रहस्य को कि जो रहस्य मृषावाद विरतिरूप प्रयोजन वाला है, अथवा कर्मनिरोधरूप संवर ही जिसका प्रयोजन है, अथवा इस प्रस्तुत संवराध्ययन के वाच्यार्थ को सुनकरके (सुदु जाणिऊण ) अच्छी तरह जान करके (न वेगियं ) नदी के प्रवाह की तरह वेगयुक्त वचन साधु को नहीं बोलना चाहिये इस प्रकार "वत्तव्यं" शब्द का संबंध सब के साथ लगा लेना चाहिये। (न तुरियं ) वात्या-वधूरे-की तरह स्वरायुक्त वचन चंचलता से युक्त " तस्स इमा" त्या: - " तस्स बीयस्स वयस्स इमा पंच भावणाओ" ते प्रसिद्ध मlad भारतनी मा वक्ष्यमाए पाय लावना “ अलियवयणवेरभणपरिरक्खजदयाए" ते मली-मसत्य-विरमा ३५ सत्यव्रतनी परिक्षाने भाटे छे. तमा " पढमं” पडेशी लापन मा प्रमाणे छ-" परमटुं संवरद सोऊण " ससुरु પાસે પહેલી ભાવનાનું રહસ્ય કે જે મૃષાવાદ વિરતિરૂપ પ્રજનવાળું છે, અથવા કર્મ નિરોધરૂપ સંવર જ જેનું પ્રયોજન છે, અથવા આ પ્રસ્તુત सध्ययननी पाया सजीन “सुठुजाणि ऊण" सारी रीते आणीने न वेगिय " नहीना पानी मवेशयुत पयन साधुणे माता જોઈએ નહીં આ રીતે “વક્તવ્ય” શબ્દને સંબંધ બધા સાથે જોડી લે. " न तुरियं" पात्या-१५२।-नी रे (परायुत " न चवलं " घोनी पति For Private And Personal Use Only
SR No.020574
Book TitlePrashnavyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalalji Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1002
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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