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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुशिनी टीका अ० ३ सू० १८ अदत्तादायिनः परलोकगतिनिरूपणम् ३५५ दिण्णसयय दुक्खसयसमभिभूए । तओ विउठवटिया समाणापुणो वि पव्वज्जति तिरियजोणिं । तहिं पि निरओषमं-अणुभवंति वेयणं । ते अणंतकालेणं जइणाम कहिं वि मणुयभावं लहिंति णेगेहिं णिरयगइगमण तिरियभवसयसहस्सपरियट्ठएहिं तत्थ वि य भवंत णारिया नीयकुलसमुप्पण्णालोयवज्झातिरि. क्ख भूया य अकुसला कामभोगतिसिया जहिं निबंधंति निरयवत्तणी भवप्पवंचकरणपणोल्लि पुणो वि संसारावत्तणमिमूले धम्मसुइ विजिया अणज्जा कूरा मिच्छत्तसुइ पवण्णा य हुँति। एगंतदंडरुइणो वेटेंति कोसिगारकीडेव अप्पगं अट्ठकम्मतंतुघणबंधणेणं ॥ सू० १८ ॥ टोका- 'मयासंता' मृताः सन्तः 'पुणो' पुनमरणानन्तरं 'परलोग: समावण्णा' परलोकसमापन्नाः परलोकं प्राप्ताः 'नरगे गच्छंति' नरके गच्छन्ति । कीदृशे नरके ? इत्याह-निरभिरामे असुन्दरे, तथा 'अंगारपलित्त गकप्प, अच्चत्य सीयवेयणा आसायणो दिण्णसययदुक्खसयसमभिभूए । - अब सूत्रकार यह कहते हैं कि ये अदत्तग्राही चोर इस लोक में तो इस प्रकार के अनेक दुःखों को भोगते हैं परन्तु परलोक में भी इनकी कैसी दुर्दशा होती है सो कहते हैं- मयासंता' इत्यादि। ___टीकार्थ-ये अदत्तग्राही चोर जब (मयासंता) मर जाते हैं तथ (पुणो) उसके अनन्तर ( परलोगसमावण्णा ) परलोकमें जाकर (नरगे गच्छंति) नरक में उत्पन्न होते हैं । जो नरक (निरभिरामे ) सुन्दरता से रहित अर्थात् असुहावने हैं, तथा (अंगारपलित्तगकप्प) अतिप्रज्वलित अंगार - હવે સૂત્રકાર એ બતાવે છે કે તે ચરકે આ લેકમાં તે ઉપરોક્ત પ્રકારનાં દુઃખ અનુભવે છે પણ પરલોકમાં પણ તેમની કેવી દુર્દશા થાય છે– " मयासंता" त्यादि टीआय-त महत्ताही योर " मयासंता" भरीने " पुणो" ५छी " परलोग समावण्णा" ५२सभा ने " नरगे गच्छंति " नआतिभा पन्त थाय छ रे न२४॥२ " निराभिरामे" सुन्दरताथी २डित छ, तथा "अंगारपलित्त For Private And Personal Use Only
SR No.020574
Book TitlePrashnavyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalalji Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1002
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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