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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पातपैङ्गलम्। अथ मरहट्ठा । (D). राहु छंद सुलखण' भणइ बिअक्षण जंपइ पिंगल गाउ' विसमइ दह अक्खर पुणु" अट्ठक्वर' पुणु एगारह ठाउ। गण आइहि छक्कलु' पंच चउक्कलु अंतर गुरु लहर देहु" सउ सोलह अग्गल मत्त समग्गल भण मरहट्ठा एहु ॥ २०८६ ॥ राधामुखमधुपानं कृतं यथा भ्रमरवरः। भ्रमरो यथा कमखमकरंदपानं करोतीत्यर्थः । स नारायणः विप्रपरायणः भवभौतिहरः चित्तचिंतं वरं ददातु ॥ (E). २०७ । यथा जिणेति ॥ येन कंसो विनाशितः कौतिः प्रका - २८। १ सक्सण (A, D & E), सुलक्षण (B & C). १ भणहि (E), भएड (F). १ विच पक्षण (A), विलक्षण (B), विष लक्षण (C). ४ पाचो (A & E). ५ पुणि (A), पुण (B). पठठलर (A & E), घट्टर (B), dropt in (C), चठक्कर (F). पुणि (A), पुणवि (E). ८ दगारह (B, C & F), एगारह (D & E). ठायो (A). १. चाईहि (D). ११ एकर (B). १९ चंवे (F). १३ गुरू लड (A & F), गुर सड (B, C & E). १४ देह (B). १५ सत (A), सड (B). १९ मत्ता (D). १० भश (D), dropt in (F). १८ मरहट्ठा (A, E & F), मरहट्टा (B), मरहरहा (C). १९ ए (A), ८ (F). For Private and Personal Use Only
SR No.020566
Book TitlePrakrit Paingalam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandramohan Ghosh
PublisherCalcutta
Publication Year1902
Total Pages727
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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