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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धियों के सेवन किये भी हम लोग केवल एक पथ्य के द्वारा ही फिर से नीरोगता प्राप्त कर सकते हैं ; परन्तु यदि औषधियों का सेवन तो बहुत करे किन्तु पथ्य को न रखे तो किसी दवा से भी आरोग्यता-तन्दुरुस्ती प्राप्त करना बहुत ही कठिन अर्थात् दुर्लभ होता है।" पथ्य रखने की आवश्यकता मनुष्यों को पथ्य रखने की आवश्यकता प्राकृतिक है । शारीरिक बिगाड़ जिसे हम भाषा में 'रोग' नाम से पुकारते हैं, वह तथा मनुष्यों की प्रकृति अनेक प्रकार को होती है । खान, पान, रहन, सहन, प्रत्येक का भिन्न २ प्रकार-रुचि का होता है। अतः देश, काल, रूढ़ि और स्वभाव आदि सब एक समान न होने से सभी अवस्थाओं में सब के लिये एक ही प्रकार का कोई नियम उपकारी नहीं ठहर सकता है। अस्तु मनुष्यों को भिन्न भिन्न अवस्था में भिन्न भिन्न प्रकार से खान, पान, आदि सेवन करना उचित होता है, क्योंकि जो वस्तु एक को लाभकारी होती है, वह कभी कभी दूसरों को मुआफिक नहीं आती है। एक वस्तु से एक रोग को शान्ति मिलती है, और दूसरों की उसले वृद्धि होती है। शीत देश से ऊपण देश वासियों में हर बात में भिन्नता रहती है। धनाढया और गरीबों के खान, पान और रहन, सहन में अन्तर होता है, ऐसे ही गाँवों की अपेक्षा नगरवासियों में और मांसाहारियों की अपेक्षा बनस्पतिसेवियों में भिन्नता रहती है, तथा शीत की अपेक्षा ग्रोप्म में जो भेद मालूम पड़ता है, उससे निश्चय होता है कि भिन्न भिन्न अवस्थात्रा में भिन्न भिन्न प्रकार से पथ्य रखने को आवश्यकता मनुष्य जाति को है। For Private And Personal Use Only
SR No.020550
Book TitlePathya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunamchand Tansukh Vyas
PublisherMithalal Vyas
Publication Year
Total Pages197
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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