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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ३ ) यही पथ्य नहीं कहलाता यद्यपि आज पथ्य की व्याख्या हम कुछ और ही समझे बैठे हैं ; तैल, गुड़ खटाई से बचना और खारे खट्टे का उपयोग न करना मात्र ही पथ्य परहेज कहलाता है; परन्तु वैद्यक शास्त्र में पथ्य का इतना संकीर्ण अर्थ वा ऐसा विंगड़ा हुआ भाव नहीं है जितना कि आज के अकसीर(?)धों से इसके प्रति हमें प्रायः उपदेश मिला करता है । बैदक शास्त्र में पथ्य की व्याख्या इस प्रकार हुई है, हिन्दुओं के आदर्श ग्रन्थ चरक संहिता में कहा है कि पथ्यं यथो न पेतं यच चोकं मनसः प्रियम् । यचा प्रियमपथ्यंञ्चानि नियतं तन्न लक्षयते ॥ जो २ वस्तु प्राण यात्रा-जीवन निर्वाह के लिये उपयोगी हो और मन को प्रिय हो वे सब पथ्य हैं। अर्थात् मनुष्य का शरीर जिस अवस्था में जिस प्रकार के रहन सहन और खान पान आदि से तन्दुरुस्त होता हो, वा रह सकता हो, उसी रीति के उपयोग ही को पथ्य कहते हैं और इससे विपरीत जिससे शरीर का स्वास्थ्य बिगड़ने की सम्भावना हो वा बिगड़ा हुआ हो, वह सुधरने के स्थान में अधिक बिगड़े उसे अपथ्य कहते हैं। पर हम लोग ऐसे उन्म भावों को लेकर पथ्य रखते हो. ऐसा क्वचित ही कहीं दृष्टि गोचर होता है, सचमुच इस विलासितापूर्ण समय में लोगों को शास्त्रीय पथ्य से रुचि भी नहीं रही है। पथ्य पर आजकल की श्रद्धा आजकल हम लोग पथ्य करते हैं, वह उसके गुणों की श्रद्धा के कारण यथोक विचार से नहीं करते हैं ; किन्तु उसके अपूर्व For Private And Personal Use Only
SR No.020550
Book TitlePathya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunamchand Tansukh Vyas
PublisherMithalal Vyas
Publication Year
Total Pages197
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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