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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 'पथ्य ।' ( आरोग्य रहने का स्वाधीन उपाय ) 13 नीरोग रहने की पहली सीढ़ी - साधन - एक 'पथ्य' ही है। यह केवल हमारे पूजनीय श्रायुर्वेद का ही सिद्धान्त नहीं है; किन्तु जगत् के सभी चिकित्सातत्वज्ञ इस बात की प्रामाणिकता को स्वीकार करते हैं। इसमें किञ्चित् भी सन्देह नहीं । भारतवासियों में आज 'पथ्य' के सम्बन्ध में जो इतने ऊंचे भाव हैं, उसका कारण केवल अन्ध परम्परा अथवा झूठी श्रद्धा और निरा विश्वास ही नहीं है, किन्तु यह सत्य है कि मनुष्य के स्वास्थ्य सुधार के लिये 'पथ्य' से सरल और कम खर्च का तथा अपने स्वाधीन कोई साधन अथवा उपाय तक नहीं जाना गया है । फिर यदि पथ्य- परहेज- से होने वाले पूर्व लाभों के कारण हम भारतवासी शारीरिक अव्यबस्था के 'सुधार में इसकी विशेष आवश्यकता समझें तथा उसके प्रति इतना अधिक मनोयोग प्रगट करें, तो कोई आश्चर्य की बात नहीं है । पथ्य की महिमा - आयुर्वेद में तो पथ्य की बड़ी प्रशंसा की गई है। यह रोग दूर करने में औषधियों से भी अधिक गुण वाला और प्रभाव शाली समझा तथा माना गया है। हमारे यहां रोग नाश करने के उपायों में स्वास्थ्य बनाये रखने अथवा पीछा स्वास्थ्य प्राप्त करने में यह सिद्धान्त वाक्य माना गया है, कि "बिना श्रौष For Private And Personal Use Only "
SR No.020550
Book TitlePathya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunamchand Tansukh Vyas
PublisherMithalal Vyas
Publication Year
Total Pages197
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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