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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra अतिकमन " क्कमुं अद्य. प्र. पु. ब. व. तिसवस्ससहस्सानि विपिने मे अतिक्कमुं, अप. 1.65; 2. ला. अ. क. अभिभूत कर लेता है, जीत लेता है, किसी अन्य से अधिक श्रेष्ठ हो जाता है; मेय्य विधि, प्र. पु. ए. व. कोघं जहे विप्यजहेय्य मानं, संयोजनं सब्बमतिक्कमेय्य, ध. प. 221; क्कम्म / म्भित्वा पू. का. कृ. अतिक्रम्म भवं समेच्च धम्मं सम्मा सो लोके परिब्बजेय्य सु. नि. 383; आचरियं निस्साय भातिकसतं अतिक्कमित्वा इदं महारज्जे पत्तोस्मीति उदानं उदानेसि, जा. अट्ट. 1.141; 2. ला. अ. ख. निर्धारित नियमों के विपरीत जाता है, पत्नी के प्रति निष्ठावान नहीं होता है, परदारा का सेवन करता है म्मन्तो वर्त. कृ.. पु. प्र. वि. ए. व. भगवतोपि महाराज, सासनवरे आणं अतिक्रमन्तो अलज्जी मि. प. 214क्कमितुं निमि. तस्सा वचनं अतिक्रमितुं असकोन्तो जा, अड - - - www.kobatirth.org कृ 1.419. अतिकमन नपुं [अतिक्रमण]. सीमोल्लंघन पराभवन, अभिभवन नियमोल्लंघन तस्सातिकमनत्थाय अरूपं पटिपज्जति अभि. अब 983 कत्रि अतिक्रमण या सीमोल्लंघन करने वाला, आगे निकल जानेवाला, सीमा के पार चला जाने वाला ततो पद्वाय पण्णसज्ञ अतिकमनकमिंगो नाम नत्थि, जा. अ. 1. 156, पाठा. अतिक्कमनमिगो; चित्त नपुं०, अतिक्रमण विषयक चित्त, सीमोल्लंघनविषयक चित्त अतिकम्पनचित्तञ्च तथैवातिक्रमो पि च, सद्धम्मो . 64. — - 104 - अतिक्कामेहि अति + √ कम का प्रेर, अनु. प्र. पु. ए. व., अतिक्रमण कराओ मतं वारं अतिकामेहीति आह जा. अ. 1.155 मेय्य विधि. प्र. पु. ए. व. प्रमाण वा अतिक्रामेय्य, पारा 229; मेत्वा प्रेर० पू० का. कृ., अतिक्रमण करवा कर छोड़वा कर आयामतो वा वित्यास्तो अन्तमसो केसग्गमत्तम्पि अतिक्रामेत्वा करोति वा कारापेति वा, पारा. 232. अतिक्खय पु० [ अतिक्षय], अतिविनाश, क्रमिक विनाश - सच्चे ठत्वा पमोचेसिं, आतीनं तं अतिक्खयं, चरिया. 3.10.4. अतिखणथ अति + √खन का अनु, म. पु. ब. व., बहुत गहराई तक खोदें - एत्तकेनेव सन्तुट्ठा होथ, मा अतिखणथाति, जा. अड. 2.246 खणे विधि, प्र. पु. ए. व. बहुत गहराई तक खोदे - तस्मा खणे नातिखणे, अतिखातञ्हि पापक, जा. अट्ठ. 2.247. अतिगच्छति अतिखण नपुं., [अतिखनन] अत्यधिक गहराई तक उत्खनन अतिखातेन नासितन्ति, अतिखणेन तञ्च धनं जीवितञ्च नासित, जा. अट्ठ. 2.247. अतिखर त्रि.. [अतिखर] अत्यन्त तीक्ष्ण, बहुत तेज अत्यन्त तीखा यदि हि अमुत्तस्स उप्पज्जिस्सा अतिखरो अभविस्सा उदा. अट्ठ 325; अतिखरं कत्वा वादेमि मञ्ञे 'ति मज्झिममुच्छनाय मुछित्वा मज्झिमसरेन वादेसि, जा. अड्ड - Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 2.209. अतिखात नपुं. [अतिखात] अत्यधिक गहराई तक खनन, गहरा गड्डा - अतिखातहि पापकं जा० अट्ठ 2.247. अतिखिण नपुं,, तिखिण का निषे [अतीक्ष्ण]. मृदु, कोमल कोमलातिखिणे मुदु, अभि. प. 1067. अतिखिप्यं निपा क्रि. वि. [अतिक्षिप्र ], अत्यधिक शीघ्र निकट भविष्य में, बहुत जल्द ही अतिखिप्पं सुगतो परिनिब्बाविस्सति अतिखिष्यं चक्धुं लोके अन्तरवाविस्सतीति दी. नि. 2.105. अतिखीण त्रि.. [अतिक्षीण] अत्यधिक दुर्बल, अतिकृश, बहुत कमजोर सेन्ति चापातिखीणाव पुराणानि अनुत्थुनं - For Private and Personal Use Only ध. प. 156. अतिखुद्दक त्रि. [ अतिक्षुद्रक], बहुत छोटा, अत्यधिक लघु स्वरूप अथवा महत्त्व वाला, बहुत हल्का भगवता भिक्खून अतिखुद्दकं निसीदनं अनुञ्ञातं, पाचि. 225; अतिमाहन्ति अतिखुद्दक चूळव, अड्ड. 56. अतिगच्छति अति + √गम से व्यु० क्रि० रू. (केवल अच्चगमा या अच्चगा के रूप में अद्य. में ही प्रयुक्त) 1. शा. अ. जीत लिया, लांघ कर पार कर लिया सब्बं अच्चगमा इमं पपञ्च सु. नि. 8; तिविधं पपञ्चे अच्चगमा अतिक्कन्तो, समतिक्कन्तोति अत्यो सु. नि. अड. 1.19 2. प्रायः अच्चयो मं अच्चगमा के मुहावरे के रूप का अत्यधिक प्रयोग अच्चयो में, भन्ते, अध्यगमा दी. नि. 1.75: योमं पलिपथ दुग्गं, संसारं मोहमच्चगा, ध. प. 414 - च्चगुं अद्य., प्र. पु०, ब० व. असेसं परिनिब्बन्ति, असेसे दुक्खमच्चगुं इतिवु. 67; 2. ला. अ. मर जाना, दिवङ्गत हो जाना, इस लोक का अतिक्रमण करना, कालकवलित होना तिगा अद्य. प्र. पु. ए. व.. दिवंगत हो गया नवमे हायने तिगा, म. वं. 41.3गत भू क. कृ. [ अतिगत ]. अधिक दूर चला गया हुआ, पार गया हुआ, अतिक्रमण कर चुका या जीत चुका नासक्खातिगतो पोसो, पुनदेव निवत्तितुं जा. अट्ठ. 3.427. -
SR No.020528
Book TitlePali Hindi Shabdakosh Part 01 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Panth and Others
PublisherNav Nalanda Mahavihar
Publication Year2007
Total Pages761
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size29 MB
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