SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 132
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra अतिगतत्त अतिगतत्त नपुं., भाव. [ अतिगतत्व], बहुत दूर चले जाने अथवा समाप्त या व्यतीत हो जाने की अवस्था तं अहं रागादीनं ... अतिगतत्ता सङ्गातिगं.... वदामीति अत्थो, ध. प. अट्ठ. 2.375. अतिगम्भीर त्रि., कर्म, स० [अतिगम्भीर ], अत्यन्त गम्भीर, बहुत अधिक गहरा महानामो सबको भगवन्तं अतिगम्भीरं पञ्हं पुच्छति, अ. नि. 1(1). 250; अत्तनो पन भिक्खुसङ्घस्स च अतिगम्भीरवित्थतं संसारमहण्णवं तरित्वा ... उदा. अ. 343. अतिगरु त्रि. [ अतिगुरु ] अत्यधिक सम्माननीय, परमपूज्य - अतिगरुनो सम्मासम्बुद्धस्स सन्तिकं उद्धतवेसेन गन्तुं न युत्तं, म. नि. अट्ठ. (उप. प.) 3.250-251. अतिगाळ्हयति अति + √गाह का वर्त० प्र० पु०, ए. व., धीरेधीरे नष्ट कराता है, विध्वंस कराता है - न्ति ब. व. वेदेहि वित्तं अतिगाळ्हयन्ति, जा. अट्ठ. 7.57; अतिगाळ्हयन्तीति वेदेहि तस्स सन्तकं वित्तं अतिगायन्ति विनासेन्ति, विद्धसेन्ति, जा. अट्ठ. 7.59. अतिगाह त्रि. अति + √गाह का भू. क. कृ. [अतिगाढ़]. अत्यधिक प्रगाढ़ बहुत अधिक तीव्र बहुत गहरा, मर्मछेदक अयं कप्पना अतिगाढहा, जा. अड. 1.72; अगाळलेनाति अतिगाढ हेन मम्मच्छेदकेन थद्धवचनेन पु. प. . अट्ठ. 63. अतिगाहित त्रि, अतिगाळह से व्यु, अत्यधिक पीड़ित, कठोरतापूर्वक दबोच दिया गया ते भतुरत्या अतिगाहिता पुन, दिसा पनस्सन्ति अलद्ध किञ्चनं जा, अड्ड, 5.397; अतिगाहिताति विद्धस्तसेनवाहना हुत्वा तदे.. अतिगुणकारक त्रि. [अतिगुणकारक ]. अत्यधिक हितकारक, अपरिमेय कल्याण करने वाला माता नाम अतिगुणकारिका - - www.kobatirth.org ... - - जा. अट्ठ. 5.322. अतिगुणता स्त्री. भाव [अतिगुणता], असाधारण गुणसम्पन्नता मणि अतिगुणताय कामददो, मि. प. 258. अतिघंसति अति + उस का वर्त, प्र. पु. ए. व. अत्यधिक रगड़ता है, घिसता है, अतिक्रमण करता है बुद्धआणं देवमनुस्सानं पञ्ञ फरित्वा अतिघंसित्वा तिष्ठति, पटि० म० 369. अतिचण्ड त्रि. [अतिचण्ड ], अत्यधिक खूंखार, अत्यधिक भयानक सो पन अतिचण्डो येव, ध. प. अट्ठ. 2.289. अतिचरण नपुं., [अतिचरण], नियम विपरीत आचरण, नियम का उल्लंघन, नियम का अतिक्रमण सकारे वह्नितेपि पुन 105 अतिचित्र अतिचरणं विय पित्तादीसु एकस्स भेसज्जे करियमाने सेसानं प्रकोपवसेन पुन साबाधता. म. नि. अड. (उप.प.) 3.8. अतिचरति अति + √चर का वर्त., प्र. पु. ए. व. [ अतिचरति ], शा. अ. सीमा के उस पार चला जाता है, अत्यधिक चारा चरता है; ला. अ. नियमों का उल्लंघन करता है, विशेषरूप से स्त्री-संसर्ग के क्षेत्र में निर्धारित सीमाओं का अतिक्रमण करता है, व्यभिचार करता है - बाराणसिरज्ञो अग्गमहेसिया सद्धि अतिचरति जा. अड. 3.265 इतिपरतनं राजानं चक्रवत्तिं मनसापि नो अतिचरति, कुतो पन कायेन, म. नि. 3.213-14: सि वर्त. म. पु. ए. व. नेतं छन्नं पतिरूपं यं त्वं अतिचरसि मं, पे. व. 361; - रामि उ० पु०, ए. व. नाह तं अतिचरामि, कायेन उद चेतसा, पे. व. 362; - न्ति प्र. पु. ब. व. रविखता अतिचरन्ति सामिकं जा. अड्ड 5.450; - मानाय स्त्री०, वर्त. कृ., च. वि., ए. व. सो मं अतिचरमानाय सामिको एतदब्रवि, पे. व. 361; - रे विधि., प्र. पु. ए. व. कं वापि इत्थी नातिचरे तदअन्ति, जा. अड. 5.441 रितुं निमि कृ. तस्स पन गतदिवसतो पद्वाय ब्राह्मणी अतिचरितुं आरद्धा जा. अड्ड 1473; रित्वा पू. का. कृ. - पुरिसा हि परस्स दारेसु अतिचरित्वा कालं करवा.... इतियभावं आपज्जन्ति ध. प. अट्ट. 1.186 - Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir — For Private and Personal Use Only रिता पु. क. ना. प्र. वि. ए. व. [ अतिचरितृ]. व्यभिचारी, व्यभिचारिणी - नाभिजानामि नकुलपितरं गहपतानिं मनसापि अतिचरिता, कुतो पन कार्यन अ. नि. 1 ( 2 ) 71 नाभिजानामि सामिकं मनसापि अतिचरिता, अ. नि. 2(2).209. अतिचारी पु.. [अतिचारी] व्यभिचारी, दुष्कर्म करने वाला, निर्धारित मर्यादा का अतिक्रमण करने वाला - अतिचारी च दुस्सीलो अप्पस्सुतो च कुसीतो स. नि. 2 (2). 238: रिनी स्त्री. व्यभिचारिणी स्त्री जारी चेवातिचारिणी, अभि. प. 238; सा आनीतदिवसतो पट्ठाय अतिचारिनी अहोसि, घ. ए. अड्ड. 2.202 तस्साहं भरिया आसिं, दुस्सीला अतिचारिनी, पे. व. 360. अतिचिण्ण त्रि. भू. क. कृ. [अतिचीर्ण] अतिक्रान्त, उल्लंघित, मर्यादाओं के बाहर जाकर दुराचार के रूप में किया गया अतिथिष्णो मया धम्मो, तं मे अक्खाहि पुच्छितोति, जा. अट्ठ. 5.256. अतिचित्र [अतिचित्र ] अत्यन्त असाधारण प्रकृति वाला, चित्र-विचित्र अतिचित्रानि पञ्हपटिभानानि विसज्जितानीति मि. प. 25. - -
SR No.020528
Book TitlePali Hindi Shabdakosh Part 01 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Panth and Others
PublisherNav Nalanda Mahavihar
Publication Year2007
Total Pages761
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size29 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy