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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobetirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पद्म पुराण ॥८ ॥ रहित हैं उनका मान में दूर करूंगा आप सम्मधान में चित्त लावो तुम्हारे चरण मेरे सिर पर हैं और उन दुष्टों को तुम्हारे पायन पाऊंगा असा कह कर विराधित विद्याधर को बुलाया और कही रत्नपुर ऊपर हमारी शीघ्र ही तयारी है इसलिये पत्र लिख सर्व विद्याधरों को बुलावो रण का सरंजाम करावो, तव विराधित ने सबों को पत्र पठाये वे महासेना सहित शीघ्र ही आये लक्ष्मण राम सहित सव नृपों को ले कर रत्नपुर को तस्फचले जैसे लोकपालों सहित इन्द्र चले, जीत जिस के सन्मुखहै नाना प्रकार के शस्त्रोंके समूह कर अाच्छादित करी है सूर्य कीकिरण जिसने सो रत्नपुर.जाय पहुंचे उज्वल छत्रकरशोभित तवराजारत्नस्थ परचक्राया जान अपनी समस्त सेना सहित युद्ध को निकसा महा तेज कर सो चक्र करोत् कुठार बाण खड्ग परछी पाश गदादि आयुधों कर तिनके परस्पर महायुद्ध भया, अप्सरों के समुह युद्ध देख योधाओं पर पुष्प बृष्टि करते भए लक्षमण पर सेना रूप समुद्र के सोखिने को बडवानल समान आप युद्ध करने को उद्यमी मया, परचक्र के योधा रूप जलचरों के चयका कारण सो लक्षमण के भय कर रथों के तुरंगों के हार्थीयों के असवार सब दशोदिशाओंको भागे और इन्द्रसपान है शक्ति जिनकी ऐसे श्रीगम और सुग्रीव हनुमान इत्यादिक सव ही युद्ध को प्रवस्ते इन योधाओं कर विद्याधरोंकी सेना ऐसेभागी जैसेपवन कर मेघ फ्ल विलायजावें तवरत्नस्थ और रत्नरथ के पुत्रोंकोभागते देख नारद ने परमहर्षितट्टोय ताली देय हंसकर कही अरे रत्नरंथ के पुत्रहो तुम महाचपल दुराचारा मन्दबुद्धिलक्षमणके गुणोंकी उच्चतान सद्द सके सो अव नप मानको पाय क्यों भागोहो तब उन्होंने कुछ जवाब नहीं दिया उसीसमय मनोरमा कन्या अनेक सखियों सहित स्थपर चढ कर महा प्रेमकीभरी लक्ष्मण के समीप आई जैसे इन्द्राणी इन्द्रकसमीप श्रावे उस देखकर ।। For Private and Personal Use Only
SR No.020522
Book TitlePadmapuran Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
PublisherDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publication Year
Total Pages1087
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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