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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पुराण! - - पद्म अयानन्तर विजिया की दक्षिण श्रेणी विष रत्नपुरनामा नगर वहां राजा रत्नग्य उस की गमी। er पूर्णचन्द्रानना उसके पुत्री मनोरमा महारूपवंती उसे योवनवती देखगजा वर ढूंढवे की बुद्धिं कर व्याकुल भया मंत्रियोंम मंत्र किया कि यह कुमारी कौनको परणाऊं इस भांति राजा को चिंतासंयुक्त कईएक दिन गये एक दिन राजाकी सभामें नारद आया राजाने बहुत सन्मान किया नारद सबही लौलिक रीतियोंमें प्रवीण उस गजा ने पुत्रीके विबाहनेका वृतांत पुछातब नाग्दन कही रामका भाई लक्षमण महा सुन्दर हैं जगत में मुख्य है चक्र के प्रभाव कर नवाए हें समस्त नरेंद्र जिसने ऐसी । कन्या उसके हृदय में आनन्ददायिनी होवे जैसे कुमुदनी के वन को चांदनी अानन्द दायनो होवे जवइस । भांति नारदने कही तब रत्नरथके पुत्र हरिवेग मनोवेग वायुवेगादिक महामानी स्वजनोंके घातकर उपजाहै वैर जिन के प्रलयकाल की अग्नि समान प्रज्वलित होय कहते भये जो हमारा शत्रु जिसे हम मारो चाहें उसे कन्या कैसे देवें यह नारद दुराचारी है, इसे यहां से काढों, असे वचन राजा पुत्रों के सुन किंकर नारद पर दौड़े तब नारद अाकाशमार्गविहार कर शीघ्र ही अयोध्या लक्ष्मण पै अाया अनेक देशान्तर की वार्ता कह रत्नरथको पुत्री मनोरमा का चित्राम दिखाया, सों वह कन्या तीनलोक की सुन्दरीयों का रूप एकत्र कर मानों बनाई है । सो लक्ष्मण चित्रपट देख अतिमोहित होय कामकैबश भया यद्यपि महा धीर वीर है तथापि वशीभूत होय गया, मन में विचारता भया जो यह स्त्रीरत्न मुझे न प्राप्त होय तो मेरा राज्य निष्फल और जीतव्यबृथा लक्ष्मण नारदसे कहताभया हे भगवान आपने मेर गुणकीर्तन किये। और उन दुष्टोंने आप से विरोध कीया, सो वे पापी प्रचण्डमानी महा क्षुद्र दुरात्मा कार्य के विचार से। -- - - - - For Private and Personal Use Only
SR No.020522
Book TitlePadmapuran Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
PublisherDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publication Year
Total Pages1087
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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