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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 11१२२. श्रीरामसे कही सो सुनकर प्रसन्न भए। गौतमस्वामी कहे हैं कि हेश्रेणिक जे पुण्याधिकारी । हैं तिनको पुण्यके उदय से अनेक उपाय सिद्ध होयह ॥ इति श्री चौसठवां पर्व संपूर्णम् अथानतर ये विद्याधरके बचन सुनकर राम ने समस्त विद्याधरों सहित उसकी अति प्रशंसा करी और हनूमान भामंडल तथा अंगद इनको मंत्रकर अयोध्याकी तरफ बिदा किये। ये क्षणमात्र में गए जहां महाप्रतापी भरत विराजे हैं सो भरत शयन करते थे तिनको रागसे जगावनेका उद्यम किया सो भरत जागते भए तब ये मिले सीताका हरण रावणसे युद्ध और लक्षमणके शक्तिका लगना ये समाचार सुन भरको शोक और क्रोधे उपजा और उसी समय युद्ध की भेरी दिवाईसो संपूर्ण अयोध्या के लोग ब्याकुल भए और विचार करते भए यह राज मंदिर में कहा कलकलाट शब्दहै आधीरात के समय क्या अतिवीर्यका पुत्र प्राय पड़ाकोईयक सुभट अपनीस्त्रीसहित सोताथा उसेतज बक्तर पहिरे और खडग हाथमें समारांऔर कोयक मृगनैनी भोरे बालकको गोदमेंलेय औरकुचोंपर हाथधर दिशावलोकन करती भई और कोई एक स्त्री निद्रा रहित भई सोते कन्थ को जगावती भई और कोई एक भरतजीका सेवक जान कर अपनीस्त्रीको कहता भया हे प्रिये कहां सोवे है आज अयोध्यामें कछु भलो नहीं राजमंदिर में प्रकाश होरहा है और स्थ, हाथी, घोड़े, प्यादे. राजद्वार की तरफ जाय हैं जो सयाने मनुष्य थे वे सब सावधान होय उठ खड़े हुये और कईएक पुरुष स्त्रीसे कहते भए ये सुवर्ण कलश और मणि रत्नों के पिटारे तहखानों में और सुन्दर वस्त्रों की पेटी भूमि ग्रह में घरो और भी द्रव्य ठिकाने धरो और शत्रुघन भाई ।। | निद्रा तज हाथी चढ़ मंत्रियों सहित शस्त्रधारक योधावों को लेय राजद्वार आया औरभी अनेक सजा । For Private and Personal Use Only
SR No.020522
Book TitlePadmapuran Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
PublisherDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publication Year
Total Pages1087
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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