SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 635
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पद्म सांचा सुग्रीव मूर्थितहोय पडा सो परिवारके लोक डेरामें लाये तब सचेत होय रामसों कहता भया हे पुगए प्रभो मेरा चोरं झमें पाया हुश्रा सो नगरमें क्यों जाने दिया तब राम कही तेरा और उसका रूप देखकर हम भेद न जाना इस लिये. सो तेरा शत्रु न हता कदाचित बिना जाने राहीं नास झेय तो योग्य नहीं तू हमारा परममित्र है तेरे और हमारे जिन मंदिरमें बचन हुवा है। अथानन्तर रामने मायामई मुग्रीवको फिर युद्धके निमित्त बुलायासोबहावलवान क्रोधरूप अग्नि कर जलता आया राम संन्मुखभए वह समुद्र तुल्य अनेक शस्त्रोंके धारक सुभट वेई भए ग्राह उनकर पूर्ण उस समयं लंचमणने सांचा. मुग्रीव पकड राखा कि कभी स्त्रीके बैरसे शत्रुके सन्मुख नपाएऔर श्रीरामको देखकर मायामई सुग्रीवके शरीर में जो बैताली विद्याथी.सो ताको पूछकर उसके शरीरमें से निकली तत्र सुग्रीवक्ता श्राकार मिट.वह साहसंगतिविद्याधर इन्दनीलके पर्वतसमान भासता भया जैस सांपकी कांचली दूर होय तैसे सुग्रीवका रूप दूर होगया. तब जो आधी सेना बानरवंशियोंकी इसके साथथी सो उस से जुदी उसके सन्मुखहोय युद्धको उद्यमी भई सब बानर बंशी एकहोय नानाप्रकारके श्रायुधों से साहसगतिसौं युद्ध करते भए सो साहसगति महा तेजस्वी प्रबलशक्ति का स्वामी सब बा र बंशियों को दशादिशाको भगाता भया जैसे, पवन धूलको उड़ावे फिर, साहसगति धनुष बाण लेय राम पें, आया सो मेघमंडल समान बाणोंकी वर्षा करता. भया उद्धतहै पराक्रम जिसका. साहसगतिके और श्रीरामके महायुद्ध भया प्रवलेहै पराकूम जिनका ऐसे सम रणकीडामें प्रवीण क्षुद्रवाणोंसे साहसगति | का वक्तर तोंडतेभए और तीक्षण बाणों से साहसगातिका शरीर चालिनी समान कर डारासोप्राणरहित For Private and Personal Use Only
SR No.020522
Book TitlePadmapuran Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
PublisherDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publication Year
Total Pages1087
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy