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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥२२॥ अतिबृद्ध, स्त्री, मद्यपायी वेश्यासक्त इनके बचन प्रमाण नहीं और स्त्रियों को शीलकी शुद्धि राखनी शील की शुद्धि विनागोत्रकी शुद्धि नहीं स्त्रीयोंको शील ही प्रयोजनहे इसलिये राज लोकमें दोनों ही नजानेपावें बाहिर रहें तब इनका पुत्र अंगद तो माताके बचनसे इनकी पक्षप्राया और जांबूनद कहेहै हम भी इन्हीं के संगरहें और इनका पुत्र सो शत्रमई सुग्रीव की पच अंगद है और सात अक्षोहणी दल इनके है औरसात । उसपैहैनगरकी दक्षिणकोर बह राखा उत्तरकी ओर यह राखे और बालीकापुत्र चंद्ररश्मि उसने यह प्रतिज्ञाकरी जो सुतारो के महिल आवेगा उसे ही खड़ग कर मारूंगा तब यह सांचा सुग्रीव स्री के विरह कर व्याकुल शोक के निवारखे निमित्त खरदूषण पै गया सो खरदूषण तो लक्षमण के खडग कर हतोगया फिर यह हनूमान पै गया जाय प्रार्थना करी में दुःख कर पीड़ित हूं मेरी सहाय करो मेरारूप कर कोई पापी मेरे घर में बैठा है सो मोहि महाबाधा है जायकर उसे मारी तब सुग्रीव के बचन सुन हनूमान् बड़वानल समान क्रोधकर प्रज्वलित होय अपने मंत्रियों सहित अप्रतीधात नामा विमान में बैठ किहकंधपुर आया || सोहनूमान को आया सुन वह मायामई सुग्रीव हाथी चढ़ लडिबे को आया सो हनूमान दोनों का सादृश्य रूप देखाअाश्चर्य को प्राप्त भया मनमें चितवता भया ये दोनों समान रूप सुग्रीवही इनमें से कौन को मारूं कछुविशेशजांना नपड़े बिना जानेसुग्रीवही को मारूंतो बड़ा अनर्थ होय। एक मुहूर्त अपने मंत्रियों से विचारकर उदासीन होय हनूमानपीछा निजपुर गया सो हनूमानको गए सुन सुग्रीव बहुत व्याकुल भया मन में विचारताभया हजारों विद्या और माया तिन से मण्डित महाबली महाप्रताप रूप बायुपुत्र सो | | भी सन्देहको प्राप्त भया सोबड़ा कष्ट अब कौन सहाय करे अतिव्याकुल होय दुःख निवारने अथ स्त्रीके । For Private and Personal Use Only
SR No.020522
Book TitlePadmapuran Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
PublisherDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publication Year
Total Pages1087
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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