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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobetirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पद्म पुराण मेरे पतिका रूप बनाय श्रावेहै पापकरपूर्ण सो इसका आदर सत्कार कोई मतकरो वह पापी शंकारहित जायकर सुग्रीवके सिंहासनपर बैठा और उसही समय सुग्रीव भी पाया और अपने लोकोंको 'चिंतापान देखे तब विचारी मेरे घरमें काहेका विषाद है लोक मलिन बदन ठौर और मेले होय रहे हैं कदोचित् अंगद मेरुके चैत्यालयों की बन्दना के अर्थ सुमेरु गया न आयाहोय अथवा राणीने काहूपर शेस किया होय अथवा जन्म जरामरण कर भयभीत विभीषण वैराग्य को प्राप्त भया होय उसको सोच होय ऐसा विचारकर द्वारे आया स्त्तमई द्वार गीत गान रहित देखा लोक सचिंत देखे मनमें विचारी यह मनुष्य औरही होगये। मन्दिर के भीतर स्त्री जनों के मध्य अपना सा रूपकिए दुष्ट विद्याधर कैा देखा दिव्य - हार पहिरे सुन्दर बस्त्र मुकट की कांति में प्रकाश रूप तब सुग्रीव क्रोध कर गाजा जैसे वर्षाकाल का मेव गाजे और नेत्रोंकी आरक्ततासे दशोदिया भारत होय गईं जैसी साझाले सब यह पाप कृत्रिम । सुप्रीव भी गाजा जैसे माता हाथी भदकर बिहल होय तैसा काम करविहल सुग्रीव सों लड़नेको उठा ।। दोऊ होंठ उसते प्रकुटी प्रदाय युद्धमने स्वामी भए सब श्रीसमचन्द्रादि मन्त्रियोंने मनेकिए और सुतास ॥ फ्टराणी प्रकट कहती भई बह कोई दुष्ट विद्याधर मेरे पतिका रूप बनाय आया है देह और बल और बघमोंकी कांति से तुल्य भया है परन्तु मेर मस्तार में महापुरुषों के लक्षण हैं सो इसमें नहीं जैसे तुरंग और खरकी तुल्यता नहीं तैसे मेरे पतिकी और इसकी तुल्यता नहीं इस भांति राणी सुतारी के वचन सुनकरभी कैएक मन्त्रियोंने नमानी जैसे निर्धनका वचन धनवान ने माने सादृश्यरूपदेखकर हरागयाहै चिसमिनका सो सब मन्त्रिवाने भेले होय मन्त्रक्रिया पंडितों को इतनोंके वचनोंका विश्वास न करनामलक For Private and Personal Use Only
SR No.020522
Book TitlePadmapuran Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
PublisherDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publication Year
Total Pages1087
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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