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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ओसवाल ज्ञाति समय निर्णय. सरासे संखेशरा गच्छ-वल्लभी से वल्लभि गच्छ-सांडेराव से सांडेरा गच्छ-जीरावला से जीरावला गच्छ इत्यादि-इन से यह सिद्ध होता है कि उपकेशगच्छ कि उत्पति उपकेशपुर से हुई-पहिला उपकेशपुर बाद उपकेशवंस फिर उपकेशगच्छ इनके स्थापक प्राचार्य रत्नप्रभसूरि श्री पार्श्वनाथ भगवान के छढे पाट वीरात् ७० वर्ष अर्थात् विक्रम पूर्व ४०० वर्षो पहिले हुए थे। इन उपरोक्त प्रमाणों से हमने यह सिद्ध कर बतलाया है कि ओशियों ओर ओसवाल मूल नगर व ज्ञाति के नाम नहीं किन्तु उपकेशपुर ओर उपकेश वंस का अपभ्रंश नाम है इस अवार्चीन. नाम परसे इस ज्ञाति कि उत्पत्ति समय विक्रम की दशवीं शताब्दी बतलाई जाति है वह बिल्कूल भ्रम व कल्पना मात्र है। आगे आज कल के इतिहासकार किस कारणसे भ्रममें पड गये उनकी तीनों कल्पनाओं का उत्तर भी यहां लिख देना अनुचित न होगा (१) मुनोयत नैणसी की ख्यात के विषय में-मुनौत नैणसी विक्रम कि सत्तरवी सदी में हुवे वह पुगंणी वातों के अच्छे रसिक थे और चारण भाट भोजकों से पूछ पूछकर संग्रह किया करते थे यद्यपि नैणसी की ख्यात की कितनीक बातें बडी उपयोगी है तथापि उसको सर्वांश सत्य मानने को ऐतिहासिक लोग तय्यार नहीं है. "देखो, काशी नागरी प्रचारिणी सभा से प्रकाशित हुआ नैणसी की ख्यात का पहला भाग" जिसमें प्रकाशक को बहुत स्थानपर विरुद्ध पक्ष से टीपणिऐं लिखनी पड़ी है। दर असल भोसवाल ज्ञातिके विषय भाटों को और नैणसी को भ्रमोत्पन्न For Private and Personal Use Only
SR No.020519
Book TitleOswal Gyati Samay Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarmuni
PublisherGyanprakash Mandal
Publication Year
Total Pages43
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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