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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री जैन जाति महोदय प्र० चोथा. होने का यह कारण हुवा हो कि विक्रम की सतग्वी सदी में यह वात प्रचलीत थी कि ओशियों उपलदेव पवारने वसाई बाद नैणसीने प्राबु के पँवारो की वंसावलि लिखते समय उपलदेव पँवार का नाम आया हो और पहिली प्रचलीत कथा के साथ जो उपलदेव पवार का नाम सुन रखा था वस नैणसीने लिख दिया कि आबु के उपलदेव पँवार ने ही प्रोशिया वसाई और अाबु के उपलदेव का समय विक्रम की दशवी शताब्दी का होनेसे लोगोंने अनुमान कर लिया कि ओसवाल ज्ञाति इसके बाद बनी है पर यह विचार नहीं किया कि आबु के उपलदेव कि वंसावलि आबु से ही संबन्ध रखती है न कि ओशियों से । उस समय श्रोशीयोंमें पडिहारों का राज था इतना ही नहीं पर पाबु के उपलदेव पँवार के पूर्व सेंकडो वर्ष श्रोशियों मे पडिहारों का राज रहा था. जिसमें वत्सराज पडिहार का शिलालेख आज भी श्रोशियों के मन्दिर में मौजुद है जिस्का समय इ० स० आठवी सदी का है और दिगम्बर जिनसेनाचार्यकृत हरिवंस पुराण में भी वत्सराज पडिहार का वह ही समय लिखा है जब आठवी सदी से तेरहवी सदी तक उपकेश (ोशीयों) मे प्रतिहारों का राज होना शिला लेख सिद्ध कर रहे है तो फिर कैसे माना जावे कि विक्रम की दशवी सदी मे आबु के उपलदेवने श्रोशियों वसाई और आबु के उपलदेव पँवार की वंसावलि तरफ दृष्टिपात किया जाय तो यह नहीं पाया जाता है कि उनने जैन धर्म स्वीकार किया था। दर असल भिन्नमाल के राजा भिमसेनं के पुत्र उत्पलदेवने उएसपुर नगर विक्रम पूर्व ४०० वर्ष पहिळे वसाया था उस उपलदेव के बदले आबु के उपलदेव मानने की For Private and Personal Use Only
SR No.020519
Book TitleOswal Gyati Samay Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarmuni
PublisherGyanprakash Mandal
Publication Year
Total Pages43
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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