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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १ ) हैं कि हे भगवन् ! जैसे दीपक के प्रकाश होने से अन्धकार दूर होजाता है ऐसे ही आपकी भक्ति से मेरे घट में भी केवलहान (ब्रह्मज्ञान) रूप प्रकाश होवे, ताकि मेरा भी सर्व अज्ञानरूपी अन्धकार दूर होजाय । (चावल) जिनको संस्कृत में अक्षत कहते हैं, इनके चढ़ाते समय यह भावना करते हैं कि हे भगवन् ! हे प्रभो ! अक्षतपूजा से मुझे भी अक्षत सुखकी प्राप्ति हो ॥ (मिठाई पकवान इत्यादि) इनसे हम यह भावना करते हैं कि हे भगवन् ! मैं अनादिकाल से ही इन पदार्थों का भक्षण करता आया हूं परन्तु मेरी तृप्ति न हुई । इसलिए मैं यह पकान्न आपको अर्पण करके प्रार्थना करता हूं कि मैं भी आपकी भक्ति के प्रताप द्वारा इन पदार्थों से तृप्त होजाउं (मुक्त होजाउं) ऐप्यारे ! हम अपने दूसरे हिन्दु भाइयों की तरह भोग नहीं लगाते हैं, प्रत्युत हम उपर लिखित आठ प्रकार की वस्तु को (कि जिन में संसार के सर्व प्रकार के हर्षकी सामग्री आजाती है, और जिनको हम अष्टद्रव्य कहते हैं) भगवान की मूर्ति के आगे अर्पण करके ऊपर लिखित भावना करते हैं, अथवा यह प्रार्थना करते हैं कि हे परमात्मन् ! मुझको संसार की यह अष्ट वस्तु मोहवश कर रही हैं और आपने तो उन सबका त्याग किया है, आप वीतराग हो, इसलिये आपकी भक्ति से मेरी भी इनसे मुक्ति हो, और मुझको भी आप जैसा शान्ति और वैराग्यभाव उत्पन्न हो, महाशयजी ! आपको विदित हो कि यह पकान इत्यादि हम ईश्वर को भक्षण For Private And Personal Use Only
SR No.020489
Book TitleMurtimandan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLabdhivijay
PublisherGeneral Book Depo
Publication Year
Total Pages206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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