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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ७० ) (फल) फूल चढ़ाते हुए हम यह भावना करते हैं कि हे भगवन् ! हे प्रभो ! यह जो फूल हैं सो कामदेव के वाण (काम को बढ़ाने वाले ) हैं । मैं अनादि काल से मांसारिक विषयों में मन हूँ । आप वीतराग हैं और आपने कामदेव को भी पराजय किया है इसलिए मैं इन फूलों को आपके लिए अर्पण करके प्रार्थना करता हूं कि यह कामदेव के बाण “जो अनादि काल से हमको क्लेश दे रहे हैं" तेरी भक्ति के कारण से आगामि काल में दुःख न देवें ॥ महाशयजी ! भगवान की मूर्ति के आगे अच्छे और पवित्र फल रखकर हम यह प्रार्थना करते हैं कि हे भगवन् ! मुझको आपकी भक्ति का मुक्तिरूप फल प्राप्त हो । (केशर वा चन्दन) ___ इनके चढ़ाते समय हम यह भावना करते हैं कि हे भगवन् ! जैसे इनकी वासना से दुन्धि की वासना दूर होती है तथैव तुम्हारी भाक्ति की वासना से हमारी भी बुरी अनादि वासना दूर होवे ॥ . (धूप) महाशय ! धूपदेने के समय हम ऐसी भावना करते हैं कि हे प्रभो ! जैसे धूप अग्नि में जलता है ऐसे ही आपकी भक्ति से मेरे सब पाप जलकर भस्म होजाएं, और जैसे धूम्रकी ऊर्द्ध गति होती है वैसे ही मेरी भी ऊर्द्ध गति होवे अर्थात् मोक्ष हो । (दीपक) महाशयजी! निस्सन्देह हम घृतसे दीपक जलाकर परमात्मा की मूर्ति के आगे रखते हैं और हम इससे यह भावना करते For Private And Personal Use Only
SR No.020489
Book TitleMurtimandan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLabdhivijay
PublisherGeneral Book Depo
Publication Year
Total Pages206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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