SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 32
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २६ ) हम को आनन्ददायक होगी। आप इस संसार में परमात्मा की मूर्ति को देखकर अप्रसन्न होते हैं तो परलोक में भी अप्रसन्न रहोगे । जो लोग इस संसार में धर्म करने से प्रसन्न हैं वे परलोक में भी अवश्य प्रसन्न और सुखी होंगे और जो लोग इस जगत में धर्म्म करने से रुष्ट रहते हैं वे परलोक में भी अवश्य दुःखी होंगे, इससे सिद्ध होता है कि परमात्मा की मूर्ति दोनों लोक में लाभदायक है, और न मानने वालों को दुःखदायक है || ढूंढिया - फिर तो भगवान् वीतराग सिद्ध न हुए जो कि सुख और दुःख देते हैं || मन्त्री - परमात्मा की मूर्ति तो एक प्रकार का साधन है, वस्तुतः तारने वाली तो हमारी आन्तरिक भावना ही है । जो मनुष्य परमात्मा की मूर्ति को देखकर परमात्माभाव लाएगा, और इनके इतिहास पर ध्यान करेगा, और शुभ भावना को विचारेगा तो वह अवश्य ही अच्छा फल पाएगा, और जो परमात्मा की मूर्ति देखकर द्वेष करेगा और अशुभ भावना करेगा वह अवश्य ही बुरा फल पाएगा ॥ ढूंढिया - जड़ वस्तु से अच्छे और बुरे भाव किस तरह आमक्ते हैं आप दृष्टान्त के साथ समझाएं || मन्त्री - एक सुन्दरी स्त्री वन में अकेली जा रही थी मार्ग में विचारी को सर्प ने काटा सर्प अति विषयुक्त था । इसलिये तत्क्षण विचारी देहान्त होगई । अकस्मात् इसी मार्ग से एक पथिक जारहा था, उसने मृत स्त्री के शरीर को For Private And Personal Use Only
SR No.020489
Book TitleMurtimandan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLabdhivijay
PublisherGeneral Book Depo
Publication Year
Total Pages206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy