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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २२४ मुंबई के जैन मन्दिर - सात बार भव्य अंजनशलाका - प्रतिष्ठा महोत्सव हुआ हैं। वि. सं. २०२१, २०२३, २०२४, २०२८, २०३७, २०३९, २०४२, २०४६, २०५५ के वर्षों में उपधान तप की महाआराधना हो चुकी हैं, उसके साथ भव्य उजमणा महोत्सव का भी आयोजन हुआ हैं। वि. सं. २०२७ और २०३६ में पूज्य युगदिवाकर आचार्यदेव श्री ने स्वयं, और अन्य कई वर्षों में आपके परिवार के साधु भगवंतो ने यहाँ चातुर्मास करके तीर्थ के विकास का बहुत कार्यो की प्रेरणा दी हैं। आपके परिवार के साधु भगवंतो का विविध पद प्रदान महोत्सवो का आयोजन यहाँ अच्छी तरह से हुआ हैं। इस तीर्थ में हर हमेश, और रविवार, नूतन मासारंभ ,और पर्वो के दिनो में, छुट्टी के दिनो में सेंकडो हजारो भाविक जन यात्रा के लिये आते है, अनेक संघ, समाज, मंडल, संस्थाएँ अपना धार्मिक कार्यक्रम, चैत्यपरिपाटी, मिलन - सम्मेलन आदि अच्छी तरह से करती हैं। यहाँ पूजा - पूजन अनुष्ठान - भक्ति, उनके साथ साधर्मिक भक्ति, संघ जमण आदि चलता रहता हैं । उन सबके लिये आज इस तीर्थ में हर प्रकार की सुविधाएँ दिन - प्रतिदिन बढ रही हैं। इसके लिये तीर्थ के स्वप्न दृष्टा परम पूज्य युगदिवाकर गुरूदेव की प्रबल प्रेरणाएँ, परम पुरुषार्थ और अमोघ उपदेश लब्धि के साथ आप श्री के कार्यकुशल विद्वान शिष्य - प्रशिष्यादि परिवार का सतत परिश्रम और ट्रस्ट एवं संघ के कार्यकर्ताओं की व्यवस्था शक्ति हमेशा कार्यरत रहती हैं। चेम्बुर तीर्थ के प्रणेता परम पूज्य युगदिवाकर आचार्य भगवंत श्री विजय धर्मसूरीश्वरजी म. सा. का वि. सं. २०३८ का फागुण सुदि १३ में पर्वदिन को मझगाँव में समाधिपूर्वक स्वर्गवास होने के बाद आपश्री के पवित्र पार्थिव देह की अपूर्व और अजोड पालखी यात्रा, श्री गोडीजी जैन उपाश्रय से फागुण सुदि १४ को सुबह ८ बजे राजशाही सन्मान के साथ निकलकर, २१ कि. मीटर का लम्बा मार्ग पार करके, दोपहर २.०० बजे चेम्बुर तीर्थ में आई, तब हजारो - लाखोका मानव महेरामण चेम्बुर के राजमार्गो और सभी विस्तारो में महासागर के मोजाओं की तरह फैल रहा था, ढाइ लाख के मानव समूह के बीच तीर्थ के परिसर के अग्रभाग में आपके पवित्र देह का चन्दन की चिता पर अंतिम संस्कार हुआ था। उसी जगह पर संगमरमर के आरस का बना हुआ आपश्री के समाधि मन्दिर में आपके पावन चरण पादुका की प्रतिष्ठा आपके पट्टधर परम पूज्य साहित्य कलारत्न आ. श्री विजय यशोदेवसूरीश्वरजी म. सा. की आज्ञा और आशीर्वाद से परम पूज्य शतावधानी आ. श्री विजय जयानन्द सूरीश्वरजी म. सा. परम पूज्य विशद वक्ता आ. श्री विजय कनकरत्नसूरीश्वरजी म. सा., परम पूज्य विद्वद्वर्य आ. श्री विजय महानन्दसूरीश्वरजी म. सा., प. पू. व्या. सा. न्या. तीर्थ आ. श्री विजय सूर्योदय सूरीश्वरजी म. सा. आदि विशाल साधु - साध्वी समुदाय की पुण्य निश्रा में महोत्सव पूर्वक हुई, तब से यह समाधि मंदिर हजारो भक्तो का आकर्षण केन्द्र बन गया हैं। अल्प समय में समाधि मन्दिर में आप श्री के आशीर्वाद मुद्रावाले शिलापट्ट की प्रतिष्ठा और त्रिचौकी में रमणीय गोखले में परम पूज्य आ. भ. श्री विजय धर्मसूरीश्वरजी म. सा. की प्रतिमा की प्रतिष्ठा होने वाली हैं। For Private and Personal Use Only
SR No.020486
Book TitleMumbai Ke Jain Mandir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal M Jain
PublisherGyan Pracharak Mandal
Publication Year1999
Total Pages492
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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