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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मुंबई के जैन मन्दिर २२५ वि. सं. २०४७, मगशर वदि १० के दिन प. पू. आ. भ. श्री विजय जयानन्दसूरीश्वरजी म. सा., प. पू. आ. भ. श्री विजय कनकरत्नसूरीश्वरजी म. सा., प. पू. आ. भ. श्री विजय महानन्दसूरीश्वरजी म. सा., प. पू. आ. भ. श्री विजयसूर्योदयसूरीश्वरजी आदि गुरूदेवो की पुण्य निश्रा में, यहाँ से २०० साधु - साध्वीजी म. और ५०० दूसरे यात्रिको मिलकर ७०० यात्रिको का श्री आबु - राणकपुर तीर्थ पदयात्रा संघ का जैन तीर्थो की यात्रा के लिए प्रयाण हुआ था, महाराष्ट्र - गुजरात - राजस्थानमें पैदल यात्रा करनेवाला पूरा ९३ दिनोका यह पदयात्रा संघ था।। वर्तमान में तीर्थ के प्रत्येक विभागो का ग्रेनाइट - मारबल आदि से नवनिर्माण हो रहा हैं। तीर्थ के पीछे इशान कोणे में तीर्थ का एक बड़ा भूमि खण्ड, जहाँ पीछले वर्षों में उपधान तप आराधना आदि कार्य मंडपो में होता था। वहाँ पाँच मंजील भव्य जैन भवन की इमारत का निर्माण परम पूज्य युगदिवाकर गुरुदेव की पुण्यस्मृति में हो रहा हैं । इस जैन भवन का परम पूज्य आचार्य भगवंत श्री विजय सूर्योदय सूरीश्वरजी म. सा. की पुण्य निश्रा में वि. सं. २०५४ का मगसर सुदि १२, गुरुवार, तारीख ११-१२-९७ को सुबह ६ बजकर ४५ मिनिट पर भूमिपूजन विधान श्री केशवजी उमरशी छाडवा के शुभ हस्तो से हुआ, और खनन विधान श्री हस्तीमलजी पुखराजजी गुर्जर के शुभ हस्तो से हुआ था। उसी दिन १२ बजकर १५ मिनिट पर शिलारोपण विधान तीर्थ के ट्रस्टी मंडल और संघ प्रमुख के शुभ हस्तो से हुआ था । वि. सं. २०५५ में उसका उद्घाटन समारोह होगा । निर्माण कार्य शीघ्रता से चालु हैं। इस भवन में जैन संघ और समाज के उपयोगी विविध सेवा विभागो का आयोजन होनेवाला हैं। जब हम जिनालय के सोपान पर चढते हैं तो दो तरफ गजराज अपनी सूंढ को उपर उठाये हमारा स्वागत करते हैं। जिनालय में मूलनायक दादा श्री आदिनाथ प्रभु ५१", महापरिकर के साथ १०१" की दिव्य प्रभावशाली, प्रथमरस निमग्न, परमानन्द दायक, अद्भुत भाव - प्रभाव संपन्न, श्वेत प्रतिमाजी, दो बाजु के दो गंभारे में क्रमश: श्री अन्तरीक्ष पार्श्वनाथजी परिकर के साथ ४१" और श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथजी परिकर के साथ ३५' की प्रतिमाएँ, रंग मंडप में काउस्सग्ग मुद्रालीन श्री आदिनाथजी ५१" और शान्तिलालजी ५१" की भव्य प्रतिमाएं, दो गोखले में श्री सहस्रफणा पार्श्वनाथजी ४१" की दो प्रतिमाएँ, चार शाश्वत जिनेश्वर देवो की २७" की ४ प्रतिमाएँ, शिखर के गंभारे में श्री धर्मनाथजी २१' चौमुख ४ प्रतिमाएँ, गुरु गौतमस्वामीजी, गौमुख यक्ष, चक्रेश्वरी माता की प्रतिमाजी उपर नीचे सब मिलाकर आरस की ५२ प्रतिमाजी, पंचधातु की २० प्रतिमाजी और सिद्ध चक्रजी, अष्टमंगल - यंत्रादि बिराजमान हैं। उपर के कांच के गंभारे में पाषाण की २८ प्रतिमाजी, पंचधातु की २५ प्रतिमाजी, सिद्धचक्रजी३१, अष्टमंगल - १६. पद्मावतीजी माताजी - २ मेहमान रूप में बिराजमान हैं । भोयरे के गंभारे में वीश विहरमाण जिनो की प्रतिमाए मेहमान के रूप में बिराजमान हैं। यह प्रतिमाए बाहिरके संघोके मंदिर में आवश्यकता अनुसार दी जाती हैं। For Private and Personal Use Only
SR No.020486
Book TitleMumbai Ke Jain Mandir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal M Jain
PublisherGyan Pracharak Mandal
Publication Year1999
Total Pages492
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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