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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १७६ मुंबई के जैन मन्दिर - विशेष :- इस शुभ क्षेत्र का खात मुहूर्त एवं शिलान्यास इस जिनालय के संस्थापक श्रेष्ठिवर्य श्री रूपेशकुमारजी ताराचन्दजी जैन नागोर (राज.) निवासी ने बड़े ठाठ माठ से तारीख ५-१-६३ को कराया था। आपश्रीने संचालन का भार ता. २४-१२-१९९७ को श्री पीयूषपाणि स्थापत्य संग्रहालय ट्रस्ट को समर्पित किया हैं। यहाँ के जिनालय में मूलनायक के रुप श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ भगवान की पाषाण की ३१" की प्रतिमाजी बिराजमान होनेवाली हैं। उपर के गंभारे में श्री मुनिसुव्रत स्वामी २५" श्री ऋषभदेव स्वामी की २१" श्री शान्तिनाथ भगवान की २१" की आरस की ३ प्रतिमाजी तथा योगिराज आबुवाले श्री शांति सूरीश्वरजी म. की ५१" की प्रतिमाजी एवं श्री नाकोड़ा भैरुजी व श्री मणिभद्रवीर की प्रतिमाजी भी बिराजमान करने की योजना हैं। आगाशी गाँव (२८६) श्री मुनिसुव्रत स्वामी भगवान भव्य शिखरबंदी जिनालय आगाशी चालपेठ, गाँव-पोष्ट आगाशी, स्टे. विरार, जि. थाणा, (महाराष्ट्र) टेलिफोन : ९१२-५८ ७६ १८, ५८७५ १८ - खीमराजजी, ३८६ ४१५६-महेन्द्रभाई विशेष :- मुंबई-पश्चिम रेल्वे लाईन का विरार स्टेशन से ५ कि.मी. आगाशी गाँव का यह प्राचीन सुप्रसिद्ध जैन तीर्थ हैं । मुंबईवासियो के लिये उपनगर का सबसे लोकप्रिय तीर्थ के रुप में प्रचलित हैं। प्रतिवर्ष चैत्री-कार्तिकी पूर्णिमा को हजारो की संख्या में दर्शन-सेवा-पूजा के लिये पधारते हैं। इसके अलावा प्रति शनिवार - रविवार तथा अन्य दिनों में भी भक्तजनो का आना जाना चालु ही रहता हैं। यहाँ पधारने वाले यात्रालु भाईयो के लिये प्रतिदिन ८ से १२ तक भाता की व्यवस्था हैं। सुप्रसिद्ध मन्दिर निर्माता श्रावक शिरोमणि सेठ श्री मोतीचन्द (मोतीशा) अमीचन्द ने लगभग १६२ वर्ष पहले जिनालय बनवाकर आपके ही कर कमलो द्वारा वि.सं. १८९२ फागुण वद २ को भव्य प्रतिष्ठा कराई थी। उसके बाद श्री जैन संघ की तरफ से मन्दिरजी का जीर्णोद्धार हुआ एवं वि.सं १९६७ का माह सुदि १० को खूब ठाठ माठ से पुन: प्रतिष्ठा महोत्सव सम्पन्न हुआ था। इसी माह सुदि १० को प्रतिवर्ष खूब उल्लास उमंग के साथ ध्वजा चढाकर वर्षगांठ मनाते हैं। जिनालय में आरस की २९ प्रतिमाजी, पंचधातु की १८ प्रतिमाजी, सिद्धचक्रजी-५ एवं चांदी के १० सिद्धचक्रजी वगैरह प्रतिमाजी का दर्शन कर आनन्द से झुम जाते हैं। यहाँ के मूलनायक श्री मुनिसुव्रत स्वामीजी की प्रतिमाजी नालासोपारा के तालाव से प्राप्त हुई हैं। यह मूर्ति श्रीपालराजा के समय की खूब प्राचीन और चमत्कारिक कही जाती हैं। आजकल जीर्णोद्धार चालु हैं। For Private and Personal Use Only
SR No.020486
Book TitleMumbai Ke Jain Mandir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal M Jain
PublisherGyan Pracharak Mandal
Publication Year1999
Total Pages492
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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