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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मुंबई के जैन मन्दिर 19 बराबर धारणा राखवी. अने रोज रात्रे तथा मादंगी वगेरेमा मानसिक भाव चैत्य परिपाटी करवानो अभ्यास करवो. तेनाथी समाधि अने प्रसन्नतानु अद्भुत बल प्राप्त थशे. देरासरमा दर्शन - वंदन - पूजा करवा ते जेम भक्ति छे तेम देरासरनी सार संभाल राखवी ते पण जिन भक्ति छे. ऊँचा प्रकारनी भक्ति छे. सार संभाल राखवी ते मात्र ट्रस्टीओनुं कार्यकरोतुं के पूजारीओनु ज कर्तव्य नथी. दरेक श्रावकनुं कर्तव्य छे. देरासरमा अस्त व्यस्त पडेला पाटला वगेरे सरखा मूकवा, काजो काढवो, पूजानी थाली-वाटकीओं साफ करवी. अंग लूछणा साफ राखवा वगेरे सार-संभाल अने साफ सफाईनें कार्य करवाथी दिलमां अरिहंत परमात्मानो अने श्री संघनो दासत्व भाव उभो थाय छे. जिनालय-निर्माणनो अपरंपार लाभ छे. हजारो लाखो आत्माओने दर्शन-शुद्धि और भाव वृद्धिनुं प्रबल साधन उभु करी आपवानो लाभ आंकडामा मापीश शकाय नहि. मोटु शिखर बंधी जिनालय बनाववानुं सामर्थ्य न होय तेने नानकडं गृह मंदिर पण पोतार्नु होवू जोई. गृह मंदिर होय तो घरना ग्लान अने वृद्ध सभ्योने जिन भक्तिनो योग मली रहेवाथी समाधि भाव सुगम बने छे. बालकोमा त्रिकाल दर्शन आरती वगैरेना सुंदर संस्कारो पडे छे. गृह मंदिरना लाभ अपरंपार छे. अहीं देरासरोनी माहिती पुस्तकना रुपमा छे. मुंबईना तमाम जिनालयोना सरनामाना बोर्ड बनावीने दरेक संघमां मूकाय तो ते जाणकारी वधारे लोकोने पहोंचे अने तेथी घणांने चैत्य परिपाटीनो भाव जागे. आ पुस्तक भावुक आत्माओना अंतरमां जिन भक्तिना उल्लासनी वृद्धि करनार बने अज शुभकामना. लि. विजय जयधोष सूरिना धर्मलाभ. ता. १५-८-९६ रामनगर, अहमदाबाद - ३८०००५. साबरमती. योगनिष्ठ जैनाचार्य श्रीमद् बुद्धि सागर सूरीश्वरजी म. के समुदाय के प. पू. आ. भग. श्री सुबोध- सागरसूरीश्वरजी म. के शिष्य परम पूज्य आ. श्री मनोहर कीर्ति सूरीश्वरजी महाराज. बाबु अमीचन्द पनालाल श्री आदीश्वरजी जैन मंदिरउपाश्रय, तीन बत्ति, वालकेश्वर, मुंबई-४०० ००६. ता. ४-परम तारक श्री जिन मंदिरोनी अति महत्त्वपूर्ण संपूर्ण यादी - संग्रह प्रकाशन करीने संपादके श्री जिनेश्वर परमात्माना परम तारक शासननी अवर्णनीय सेवा करी छे. भाविना इतिहासमां ओक सराहनीय ग्रन्थनुं स्थान प्राप्त करशे. देश अने परदेशमां बेठा बेठा अनेक भाविको तीर्थ यात्रानो अमूल्य लाभ लेवा भाग्यशाली बनशे. शासन सेवाना प्रशंसनीय / अनुमोदनीय कार्य माटे सम्पादकश्रीने शतश: धन्यवाद सह अन्तरना मंगलमय शुभ आशिष. लि. आ. सुबोध सागरसूरी म. द. मनोहर कीर्ति सागर सूरि. 卐 For Private and Personal Use Only
SR No.020486
Book TitleMumbai Ke Jain Mandir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal M Jain
PublisherGyan Pracharak Mandal
Publication Year1999
Total Pages492
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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