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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 18 मुंबई के जैन मन्दिर जिनालयो मे जाय छे, कार्यकर्ताओने मले छे. जाते निरीक्षण करीने सर्वांगी माहिती अकत्रित करे छे. ते आ कार्यनी विशेषता छे. बृहद् मुंबईना तमाम जिनालयोनी चैत्यपरिपाटी - दर्शन - यात्रा करवानी भावना वाला भाग्यवान भाविकोने माटे आ पुस्तक खूब सरस रीते मार्ग दर्शक बनवा साथे उपयोगी अने उपकारक बनशे. अमां संदेह नथी. ते उपरांत मुंबईना तमाम जैन मंदिरोनो प्रमाणभूत इतिहास पण आ ग्रन्थथी उपलब्ध थई शकशे. ओ पण अति आवश्यक अने महत्त्वनी बाबत छे। श्री भंवरलालभाई पोताना आ विरल सत्प्रयत्नमां संपूर्ण सफल बने... अवी भावना. कांदिवली (प.) आषाढ सुदि १०, वि. सं. २०५२, ता. २६-७-९६. - विजय सूर्योदय सूरिका धर्मलाभ सिद्धान्त महोदधि, सुविशुद्ध संयममूर्ति, वात्सल्य वारिधि, कर्म शास्त्र निपुण मति, स्व. आचार्य भगवंत श्रीमद् प्रेम सूरीश्वरजी म. साहेब के शिष्य पू. आ. श्री भुवनभानु सूरीश्वरजी म. के समुदाय के परम पूज्य आचार्य भगवंत श्री विजय जयधोष सूरीश्वरजी महाराज ___ जिन चैत्य अने जिन बिंब ओ शुभ भावोनी वृद्धि माटेर्नु श्रेष्ठ आलंबन छे. अरिहंत परमात्मानी गेर हाजरीमा जिन बिंबर्नु आलंबन पामीने भव्यात्माओ पोताना आत्मानुं कल्याण साधे छे. जिन दर्शन माटे जिन चैत्ये जवानी इच्छा थवा मात्रथी उपवासर्नु फल मले. तेम शास्त्रमा बताव्यं छे. अनेक जिनालयोना दर्शन - वन्दन - पूजनथी विशेष भावोल्लास पेदा थाय छे. तेथी पर्वकृत्य तरीके चैत्य परिपाटीनुं कर्तव्य बताव्युं के अष्टमी, चतुर्दशी तथा पर्युषण आदि पर्वोमां गाम अने नगरना अनेक चैत्योनी यात्रा करीने चैत्य परिपाटीचं कर्तव्य बजावतुं जोईओ. मुंबई जेवा महानगरमा सेकडो जिन चैत्यो आवेला छे. तेना सरनामा वगेरेनी विस्तृत माहिती उपलब्ध होय तो नगर यात्रा अने चैत्य परिपाटी करवानी भावना वाला भावुकोने खूब उपयोगी बने. ते आशयथी प्रस्तुत पुस्तक प्रगट थई रयुं छे. आ पुस्तकना आलंबनथी सह कोई विशेष भक्ति भाव लावी विविध चैत्योना दर्शननी अभिलाषावाला बने. ते पुस्तकनी सार्थकता छे. रोज अथवा पर्वतिथिओ पाँच के वधारे जिनालयोने जुहारवानी टेव पाडवाथी आत्मामां जिन भक्तिना दृढ संस्कार उभा थशे. जे भवांतरमा पण पौद्गलिक विषयोनी आसक्ति तोडवानुं काम करशे. आ पुस्तकने पामीने अक वर्षमा मुंबईना तमाम जिनालयोनी चैत्य परिपाटी करवानी दरेके भावना राखवी. ओक वार तमाम देरासरोनी उपयोग पूर्वक भावपूर्वक चैत्य परिपाटी करी लीधा पछी मनमां तेनी For Private and Personal Use Only
SR No.020486
Book TitleMumbai Ke Jain Mandir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal M Jain
PublisherGyan Pracharak Mandal
Publication Year1999
Total Pages492
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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