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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मुंबई के जैन मन्दिर ११७ विशेष :- अचिंत्य महिमा जिनकी चिहु ओर गुंज रही हैं। जो की साक्षात कल्पवृक्ष हैं, ऐसे श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ प्रभुजी की अलौकिक जिनमूर्ति तथा शत्रुजय मंडन श्री आदीश्वर दादा, शांति दाता श्री शांतिनाथ दादा के जिन बिम्बो की प्रतिष्ठा वि. सं. २०४८ का माह सुद ६, सोमवार तारीख १०-२-९२ के शुभ दिन आ. श्री विजय विक्रमसूरीश्वर म. के पट्टधर आ. श्री विजय जिनभद्रसूरीश्वर तथा आ. विजय यशोवर्म सूरीश्वरजी म. आदि मुनि भगवन्तो की पावन निश्रा में हुई थी। ___श्री भाववर्धक जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक संघ द्वारा संस्थापित एवं संचालित इस गृह मन्दिर में पाषाण की ३ प्रतिमाजी, पंच धातु की - २ प्रतिमाजी, सिद्धचक्रजी - २ एवं अष्टमंगल - १ शोभायमान हैं। ___ यहाँ आराधना भवन में जैन पाठशाला चालु है। श्री भाववर्धक सामायिक मण्डल, श्री पार्श्व विनीत महिला मण्डल, स्नात्र पूजा - पूजा - भावना - भक्ति - गीत वगैरह प्रवृत्ति में लीन हैं। (१९२) श्री विमलनाथ भगवान शिखर बंदी जिनालय दत्त मन्दिर रोड, मुंबई - अहमदाबाद रोड के पास, बाण डोंगरी, ___ मलाड (पूर्व), मुंबई - ४०० ०९७. टे. फोन : ८८९ २६ २१ श्री कल्याणजीभाई विशेष :- इस जिनालय के संस्थापक एवं संचालक श्री बाणडोंगरी अचलगच्छ जैन संघ हैं । इस जिनालय का भूमिपूजन एवं शिलास्थापना ता. १५-१-९७ को परम पूज्य आ. श्री कलाप्रभसागर सूरीश्वरजी म. आदि मुनि भगवंतो की पावन निश्रा में हुई थी। परम पूज्य आ. श्री गुणोदय सागर सूरीश्वरजी म. और आ. श्री कलाप्रभ सागरसूरीश्वरजी म. की पावन निश्रा में बडौदा में १ फरवरी १९९८ को अंजन शलाका की हुई प्रतिमाजी का जिनालय में तारीख ६ फरवरी १९९८ को परम पूज्य श्री पुण्योदय सागरजी म. और साध्वीजी कीर्तिगुणाश्रीजी की शुभ निश्रा में प्रवेश हुआ था। यहाँ मूलनायक श्री विमलनाथ प्रभु के साथ श्री संभवनाथ प्रभु, श्री मुनिसुव्रतस्वामी, श्री उवस्सगहरं पार्श्वनाथ, श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ प्रभु की ५ प्रतिमाजी, पंचधातु की २ प्रतिमाजी, सिद्ध चक्रजी - २, अष्टमंगल - १ के अलावा यक्ष-यक्षिणी, महाकाली, पद्मावती, चक्रेश्वरी एवं श्री घंटाकर्णवीर, गुरु गौतम स्वामी, आर्यरक्षित सूरि तथा आ. श्री गुणसागर सूरि म. की प्रतिमाजी बिराजमान हैं। For Private and Personal Use Only
SR No.020486
Book TitleMumbai Ke Jain Mandir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal M Jain
PublisherGyan Pracharak Mandal
Publication Year1999
Total Pages492
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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