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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 14 मुंबई के जैन मंदिर - प्रथम गाडी को सत्तावन मिनिट का समय लगा था। लोग बिना बैल-घोडे की गाडी देखकर आश्चर्य में आये, और गा उठे: साहेबाचा पोर्या कसा अकली बिन बैलाने गाडी रे हांकली लोगो में अपार उत्साह भरा था। किन्तु मुंबई के गवर्नर किसी कारण वश नाराज हो गये थे और उद्घाटन के एक दिन पहले ही गवर्नर लोर्ड फोकलेण्ड और कमान्डर-इन-चीफ लोर्ड फेडरिक फीन्झक लेरन्स माथेरान चले गये। लेडी फोकलेण्डने उद्घाटन समारोह अपने हाथों सम्पन्न किया। ज्यों ज्यों मुंबई का विकास होता गया, मुंबई में नई नई रंग रंगीली बहारे आने लगी । बोरी बन्दर स्टेशन, म्युनिसिपल कार्यालय आदि अनेक इमारतें अंग्रेजों के शासन काल में बनने लगी, चारों ओर नई-२ सडकों से मुंबई की रौनक बढने लगी। पहले घोडे की ट्रामे और फिर बिजली की ट्रामे रोड पर चलने लगी। चर्चगेट से विरार और वी.टी. बोरी बन्दर (शिवाजी टर्मीनस) से कल्याणअंबरनाथ और कर्जत तक मुंबई नगर से उपनगरीय रेलगाडीयाँ चलने लगी हैं। मुंबई बन्दरगाह होने से व्यापार उद्योग में भारत का पहले दरजे का शहर बन गया हैं। भारत के सब प्रान्तो के अलावा विश्व का कोई ऐसा देश नहीं कि, जिस देश के लोगो का मुंबई में आवागमन नहीं हुआ हैं। ३३८ वर्ष पुराना शहर आज अपने नवीनतम आधुनिक साज सज्जावाला विस्तृत विशाल रुप में विश्व के ऊँचे स्तर का नगर बन गया हैं। इसे सिमटा हुआ भारत ही जाना जाता है । परम पूज्य आचार्य श्री दर्शन - नित्योदय सागर - चंद्राननसूरीश्वर म. की पावन निश्रा मे वि. सं. २०५४ - २०५५ के उपधान तप के अवसर पर लेखक की छोटी बहन श्रीमती भाग्यवंती धीसूलालजी (बीजापुर) के प्रथम उपधान पर माला पहनाते हुए लेखक एवं उनकी धर्मपत्नी श्रीमती फेन्सीबाई। For Private and Personal Use Only
SR No.020486
Book TitleMumbai Ke Jain Mandir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal M Jain
PublisherGyan Pracharak Mandal
Publication Year1999
Total Pages492
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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