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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मुंबई के जैन मंदिर प्रेरक मार्गदर्शक एवं संशोधक शासन प्रभावक प.पू. आचार्य भगवंत श्री विजय सूर्योदयसूरीश्वरजी महाराज जीवन झलक auth है समय नदी की धार, जिसमें सब कुछ बह जाता हैं । है समय बड़ा तुफान, जिसमें प्रबल पर्वत भी झुक जाता है। अक्सर दुनिया के लोग, समय में चक्कर खाता है । परन्तु कुछ विरल ऐसे होते है, जो जीवन को इतिहास बनाता है। इस हिन्दी पक्ति में निर्देश कराये अनुसार जीवन को इतिहास बनानेवाले एक विरल पुण्य पुरुष यानी व्या.सा.न्या. तीर्थ परम पूज्य शासन प्रभावक आ.भ. श्री सूर्योदयसूरीश्वरजी म.। १५०० वर्षों से अधिक प्राचीन धार्मिक सामाजिक इतिहास धारण करनेवाली तीर्थ भूमि दर्भावती नगरी में वि.सं. १९८८ की साल में श्री वासुपूज्य प्रभु के जन्म कल्याणक के दिन माह वदी १४ (महा शिवरात्रि) को आपका जन्म हुआ। पिता श्री का नाम श्री चीमनभाई और माताश्री का नाम श्रीमती मणिबहन । गर्भ श्रीमंताई और प्रबल संस्कार परंपरा धारण करनेवाले इस कुलमें आपश्री की संस्कारिता प्रभात के पुष्प की तरह खिलती गई और केवल दसवें वर्ष में पंच प्रतिक्रमण-नवस्मरण का संपूर्ण अभ्यास आपश्रीने कंठस्थ किया। आपश्री का सांसारिक नाम था श्री शेवन्तीभाई। वि.सं. २००० में आपश्री पूज्यपाद युगदिवाकर आचार्य भगवंत श्री विजय धर्मसूरीश्वरजी म. सा. (उस समय पन्यास प्रवर) के संपर्क में आये, लगातार तीन वर्ष से अधिक समय उनकी निश्रा में संयम की तालिम लेकर वि.सं. २००४ के फाल्गुण सुदी २ को गुजरात-सौराष्ट्र के राजकोट के निकट त्रम्बा गाँव के बाहर पूज्य युग दिवाकर गुरुदेव के शुभ हस्ते आपश्रीने संयम मार्ग स्वीकार किया, और उसके बाद तुरन्त ही वहाँ से विहार करके ११ दिन में श्री शत्रुजय महातीर्थ की छाया में पधारकर श्रमण जीवन की सर्व प्रथम तीर्थ यात्रा की। उस तीर्थयात्रा के साथ ही आपश्रीने ज्ञान यात्रा का भी पालीताणा में चमत्कार किया। सिर्फ दो ही दिन में ३५० गाथा का पक्खी सूत्र, डेढ दिन में ही १३७ श्लोक का गुणस्थानक्रमारोह प्रकरण, दीक्षा के प्रथम ही चातुर्मास में पर्युषणा महापर्व की सभा में संस्कृत भाषामय श्री जगद् गुरु हीर सूरीश्वरजी म. का चरित्र वांचन किया। ऐसी अनेक घटनाओं द्वारा आप श्री की चमत्कारिक प्रज्ञा शक्ति का सभी को परिचय होने लगा। For Private and Personal Use Only
SR No.020486
Book TitleMumbai Ke Jain Mandir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal M Jain
PublisherGyan Pracharak Mandal
Publication Year1999
Total Pages492
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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