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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४८ www.kobatirth.org मुंबई के जैन मन्दिर विशेष :- इस मंदिरजी का निर्माण राजस्थान के लुणावा निवासी श्रीमती अमृतीबेन जुहारमलजी निंब सोलंकी परिवारवालोने कराया है। आचार्य भगवन्त श्री मेरूप्रभसूरीश्वरजी म. की शुभ प्रेरणा से परम पूज्य मुनिराज श्री रत्नाकरविजयजी म. की पावन निश्रा में, भिवन्डी में अंजनशलाका की हुई प्रतिमाजी की स्थापना वि. सं. २०४४ का आंसौ सुद १३ को हुई थी । (८१) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यहाँ आरस की ३ प्रतिमाजी मूलनायक श्री शंखेश्वर भगवान तथा आजू बाजू में, श्री मुनिसुव्रतस्वामी एवं श्री कुंथुनाथ प्रभु, पंचधातु की ३ प्रतिमाजी, सिद्धचक्रजी - १ इसके अलावा श्री मणिभद्रवीर, श्री नाकोडा भैरुजी, श्री पार्श्वयक्ष पद्मावती तथा लक्ष्मी भी बिराजमान है। यहाँ दीपक बाजार जैन पाठशाला, श्री संभवनाथ जैन मित्र मंडल, श्री पार्श्वनाथ जैन युवा मण्डल की व्यवस्था है । मन्दिरजी के सामने ही स्व. श्रीमती अमृतीबेन जुहारमलजी नाम से कबुतर खाना 1 भी बनाया गया है । श्री सीमन्धर स्वामी भगवान महामेरु प्रासाद बोम्बे डाईंग मील गेट नं. २ के सामने दीपक टॉकीज के पीछे, पाण्डुरंग बुधकर मार्ग, दुरदर्शन क्रेन्द्र मार्ग, वरली, मुंबई ४०० ०१३. टे. फोन : ओ. ४९७२५८३, ४९७२५८४, ४९६३५१५ - रमेशजी विशेष :- प. पू. युगदिवाकर आचार्य भगवन्त श्री विजय धर्मसूरीश्वरजी म.सा. के परम गुरुभक्त राजस्थान के नोवी गांव हाल शिवगंज निवासी स्व. डॉ. चौथमलजी वालचन्दजी की धर्मपत्नी श्री कमलादेवी के आदेश से सुपुत्र श्री रमेशजी, श्री किशोरजी एवं श्री प्रवीणजी के तन मन धन के सहयोग से अपने पिता स्व. चौथमलजी की भावनानुसार वरली क्षेत्र में इस शिखरबृद्ध महा मेरु प्रसाद का निर्माण हुआ है। आप श्री के पिता श्री चौथमलजी ने अपने जीवन के ३० वर्ष इसी क्षेत्र में बिताये थे । आप की प्रबल इच्छा थी की इस क्षेत्र में महा मेरु प्रासाद बनाया जाय, किन्तु ता. १४-१-९० को इस जग को छोडकर भगवान के दरबार मे पधार गये । मातुश्री कमलादेवी और पिता तुल्य सेठ श्री रमणलाल डायालाल शाह जो महेसाणा तीर्थ के ट्रस्टी थे, वे इनके परिवार के मार्गदर्शक रहे थे। अत्यन्त परिश्रम के साथ यहाँ के स्थानिक रहनेवालो के पूर्ण सहयोग और सहकार से मन्दिरजी निर्माण करने की इच्छा से सत्यकी नगर के कम्पाउण्ड में भूमिपूजन ता. १-९२-९३ को शिवगंज निवासी श्रेष्ठीवर्य श्री मानजी शा. शांतिलालजी वरदीचन्दजी के करकमलो द्वारा आचार्य भगवन्त श्री विजय भुवन भानुसूरीश्वरजी म. के. शिष्यरत्न आ. गुरुदेव श्रीमद् राजेन्द्रसूरीश्वरजी म. आदि मुनि भगवन्तो, साध्वी और सुश्रावको की निश्रा में हुआ था । भूमि शुद्धि करण के बाद मन्दिर का शिल्यान्यास ता. १६-४-९४ को परम पूज्य गच्छाधिपति आ. श्रीमद् विजय जयघोषसूरीश्वरजी म. सा. आ श्री हेमचन्द्रसूरीश्वरजी म. सा. आदि मुनि गण तथा साध्वीओ के भव्य समुदाय की उपस्थिति में यह समारोह धूमधाम से हुआ । सुप्रसिद्ध शिल्पकार शांतिलाल चुनीलाल सोमपुरा द्वारा तीन वर्षो में इस मंदिर का सुशोभित, अतिसुंदर कलापूर्ण तथा शास्त्रोक्त निर्माण हुआ है ! For Private and Personal Use Only
SR No.020486
Book TitleMumbai Ke Jain Mandir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal M Jain
PublisherGyan Pracharak Mandal
Publication Year1999
Total Pages492
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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