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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अालोचना खंड ८७ था । महाराष्ट्र के प्रमुख संत ज्ञानेश्वरी गीता के रचयिता ज्ञानेश्वर इन्हीं की शिष्य-परम्परा में थे, पंजाब में पूरन भक्त गोरखनाथं का शिष्य था, गौड़ देश के राजा गोपीचंद और उसकी माता मयनावती गोरखनाथ के गुरुभाई हालीकपाव (जालंधरनाथ) के शिष्य थे । भतृहरि जैसा कवि और यशस्वी राजा भी गोरखनाथ से प्रभावित हुआ कहा जाता है । कथाओं में ऐसा भी प्रसिद्ध है कि मध्य युग का अर्ध-कल्पित वीर-नायक आल्हा भी गोरखनाथ का शिष्य था। उत्तर भारत के अद्विजों में इस योग का खूब प्रचार था। ईसा की बारहवीं और तेरहवीं शताब्दी में जो विजेता मुसलमान उत्तर भारत में फैल रहे थे उनमें भी इस योग का प्रचार फैल रहा था। प्रसिद्ध मुसलमान यात्री इब्नबतूता, जिसने मुहम्मद तुगलक के शासन काल सन् १३३४ में भारत-यात्रा की थी, लिखता है कि उस समय योगियों का बहुत प्रभाव था। उनके अलौकिक चमत्कारों का वर्णन करते हुए वह लिखता है : __ "योगीजन भी बड़े-बड़े अद्भुत कार्य कर डालते हैं। कोई-कोई तो कई मास पर्यंत बिना कुछ खाए-पिए वैसे ही रह जाते हैं; और कोई-कोई धरती के भीतर गड्ढे में बैठ ऊपर से चिनाई कराकर बायु के लिए केवल एक रंध्र छुड़वा देते हैं । वे कई मास तक, कुछ लोगों के अनुसार यूरे वर्ष भर, इसी प्रकार से रह सकते हैं।" "मंजौर ( मंगलौर ) नामक नगर में मुझे एक ऐसा मुसलमान दिखाई दिया जो इन्हीं योगियों का शिष्य था । यह व्यक्ति एक ऊँचे स्थान पर ढोल के भीतर बैठा हुश्रा था। पचीस दिन पर्यंत तो हमने भी इसको निराहार और बिना जलपान के यों ही बैठे देखा परन्तु इसके पश्चात् वहाँ से चले आने के कारण फिर हमको पता न चला कि वह और कितने दिन इस प्रकार उपवास करता रहा।" इसी प्रकार और भी योगियों के चमत्कार की बातें उस यात्री ने विस्तारपूर्वक लिखी हैं, जिनसे पता चलता है कि मुसलमान लोग भी इस योग से प्रभावित हो रहे थे । ऐसा था वह योग-मार्ग जिससे भक्ति-धर्म को संघर्ष लेना पड़ा। अद्वैतवाद और हठयोग के अतिरिक्त बंगाल में तांत्रिक उपासना और For Private And Personal Use Only
SR No.020476
Book TitleMeerabai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreekrushna Lal
PublisherHindi Sahitya Sammelan
Publication Year2007
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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