SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 93
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ८६ मीराबाई भक्ति-धर्म के प्रमुख प्राचार्य श्री रामानुज थे जिन्होंने शंकराचार्य के श्रद्वैतवाद का खंडन कर इसे एक ठोस दार्शनिक भूमि पर लाकर प्रतिष्ठित किया । उनके पश्चात् मध्वाचार्य, विष्णुस्वामी और निम्बार्क ने अपनी दार्शनिक विशेषताएँ प्रदर्शित कीं, परन्तु मूलरूप में उन सभी ने एक भक्तिधर्म को स्वीकार किया । इस प्रकार यह भक्ति-धर्म क्रमशः अधिक प्रचार पाने लगा । दक्षिण भारत में पूर्ण प्रभुत्व स्थापित कर लेने के बाद इस भक्ति-धर्म ने उत्तर भारत की ओर अपनी विजय यात्रा श्रारम्भ की । निम्बार्क ने दक्षिण से आकर भगवान कृष्ण की लीला भूमि व्रज में अपना केन्द्र स्थापित किया | उन्हीं से प्रभावित होकर जयदेव ने बारहवीं शताब्दी के अंत में 'गीत गोविन्द' की अमर रचना की । निम्बार्क' की (शिष्य-परम्परा में माधवेन्द्रपुरी श्रौर ईश्वरीपुरी तथा अंत में चैतन्य महाप्रभु ने ब्रज और बंगाल में रस की धारा उमड़ा दी। इसी प्रकार दक्षिण से दीक्षित होकर स्वामी रामानंद ने काशी को अपना केन्द्र बनाया और उनके बारह शिष्य-मंडली ने मध्यदेश में भक्ति-धर्म का पूर्ण प्रचार किया । विष्णुस्वामी की शिष्य-परम्परा वल्लभाचार्य ने ब्रज मंडल को अपना केन्द्र बनाया और पश्चिम भारत में भक्ति की मधुर धारा प्रवाहित कर दी । इस प्रकार दक्षिण से प्रारम्भ होकर यह भक्ति-धर्म क्रमशः भारत के कोने-कोने में फैल गया । * Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उत्तर भारत में भक्ति धर्म को अपने विकास पथ पर दो प्रमुख प्रवृत्तियों से संघर्ष लेना पड़ा था । एक था शंकराचार्य का अद्वैतवादी ज्ञान-मार्ग जो समस्त भारतवर्ष में पंडित-समाज में मान्य था और जिसने बौद्ध धर्म जैसे विस्तृत और विशाल धर्मं को जड़ से उखाड़ दिया था । यह अद्वैतवादी ज्ञानमार्ग उपनिषदों का ब्रह्मज्ञान ही था जिसे शंकराचार्य की अद्भुत प्रतिभा ने अत्यंत स्पष्ट और तर्कसंगत बना दिया था। दूसरा नाथ सम्प्रदाय का हठयोग मार्ग था जो बौद्धों के तांत्रिकवाद और वज्रियान शाखा के आधार पर एक प्रचलित मार्ग बन गया था । इससे सम्पूर्ण उत्तर भारत प्रभावित हो रहा था । इस मार्ग के प्रमुख आचार्य मछंदरनाथ ( मत्स्येन्द्र नाथ ) के शिष्य गोरखनाथ (गोरक्षनाथ ) थे, जिनका प्रभाव बहुत दूर तक फैला हुआ For Private And Personal Use Only
SR No.020476
Book TitleMeerabai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreekrushna Lal
PublisherHindi Sahitya Sammelan
Publication Year2007
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy