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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आलोचना खंड 1 भावना का वास्तविक स्वरूप जिसने सर्वप्रथम साधारण जनता को आकृष्ट किया, वह आलवार कवियों का मधुर गान था । दक्षिण भारत के तमिल प्रांत में ईसा की सातवीं शताब्दी से लेकर दशवीं शताब्दी तक लगभग तीन सौ वर्षों के लम्बे समय में एक के बाद एक कवि-गायक पैदा होते गये। वे मंदिर-मंदिर में घूमकर अपने इष्टदेव की मूर्ति के सामने आनंद-विभोर हो काव्य-रचना करते और गाते रहते थे । इनमें कितने शैव भी थे और कितने वैष्णव । वैष्णव कवि-गायकों में बारह विशेष रूप से प्रसिद्ध हुए और उन्हीं बारह कवि - गायकों को अलवार' की संज्ञा प्रदान की गई । वे जाति-वहिष्कृत तथा शूद्रों को भक्ति का उपदेश करते थे और उनमें कितने ही स्वयं जाति-वहिकृत थे । इन्हीं बालवारों के मधुर संगीत में सबसे पहले विशुद्ध भक्ति-भावना प्रस्फुटित हो उठी थी, जिसने आगे चलकर मनीषियों और शास्त्रज्ञ विद्वानों को भी आकृष्ट किया । नाथ मुनि, यामुनाचार्य और रामानुजाचार्य भी इन लवारों से बहुत प्रभावित हुए थे । इस भक्ति भावना ने विद्वानों को भी कृष्ट किया इसीलिए इसका भी शास्त्र बनना श्रावश्यक हो गया और हृदय की एक मधुर भावना को लेकर कितने तत्वों का चिन्तन प्रारम्भ हो गया, शास्त्र बनने लगे, संहिताएँ लिखी जाने लगीं, पुराणों की सृष्टि हुई, न जाने कितने खंडन-मंडन प्रारम्भ हो गया । नारद भक्तिसूत्र में एक सूत्र हैं 'वादो नावलम्ब्य ः ' अर्थात् भक्त को वाद-विवाद नहीं करना चाहिए, परन्तु इसी भक्ति को लेकर कितना वाद-विवाद उठ खड़ा हुआ उसकी कोई सीमा नहीं । कवि की एक सरल सुंदर भावना लेकर दार्शनिकों और धर्माचार्यों ने एक बृहत् आंदोलन प्रारंभ कर दिया जो धर्म के इतिहास में भक्ति आंदोलन के नाम से प्रसिद्ध है । ८५ १ १२ आलवारों के नाम इस प्रकार हैं: पायगैर, भूतात्त, पेयार, तिरुमलिसाइ, शठकोप अथवा नम्मालवार मधुर कवि, कुलशेखर, पेरियर, प्रन्दल, तोन्दरिपोद्धि, तिरुप्पनर, तिरूमंगाइ । इनमें अंदल स्त्री थी । For Private And Personal Use Only २ नम्मालवार की कृतियां तमिल प्रांत में वेद के समान श्रद्धा की दृष्टि से देखी जाती हैं | नाथ मुनि नम्मालवार के शिष्य कहे जाते हैं जिन्होंने आलवारों के ४००० पदों का संग्रह किया था।
SR No.020476
Book TitleMeerabai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreekrushna Lal
PublisherHindi Sahitya Sammelan
Publication Year2007
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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