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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मीराँबाई न्यौछावर हो गई हैं भगवान के शील और शक्ति, दया और करुणा की श्रीर मीरों की दृष्टि ही नहीं जाती; उनकी आँखों में तो श्यामसुंदर का रूप ही समाया हुआ है। हमारो प्रणाम बाँके बिहारी को ॥ मोर मुकुट माथे तिलक विराजै, कुंडल अलकाकारी को। अधर मधुर पर बंसी विराजै, रीझ रिझानै राधा प्यारी को। यह छवि देख मगन भई मीराँ, मोहन गिरधर धारी को ॥ [ मीराबाई की पदा० प ० सं० २] और वे निस्संकोच भाव से अपनी सखियों ( समान भक्ति-भावना बालों) से कह उठती हैं : ऐसे पिया जान न दोजे हो ।टेका चलो री सखो मिलि राखि के नैना रस पीजे हो । स्याम सलोनो साँवरो, मुख देखे जीजे हो । जोह जोइ भेष सो हरि मिले,सोइ सोइ भल कीजे हो । मीरों के गिरधर प्रभू , बड़ भागन रीझे हो । [ मीराबाई को शब्दावली ५० ६] यह भगवान के मोहन रूप पर रोमना नारी मीरों को ही शोभा देता है। माधुर्य भाव की भक्ति करने वाली मोरों के लिए अपने प्रियतम भगवान की सभी विशेषताओं को छोड़ उनका मधुर सौन्दर्य ही सबसे अधिक आकर्षक है। अपने अपने भगवान् के सौन्दर्य चित्रित करने में विद्यापति, सूर और तुलसी ने भो कुछ उठा नहीं रखा, परन्तु मोराँ के रूप-सौन्दर्य के चित्रण में जो तन्मयता और सजीवता है वह अन्यत्र दुर्लभ है। सूर और तुलसी ने एक तटस्थ कलाकार को दृष्टि से भगवान कृष्ण और भगवान राम का रूप-. चित्रण किया । साहित्य की नख-शिख-वर्णन-परम्परा का पालन करते हुए तुलसीदास ने गीतावली में राम का सौन्दर्य चित्रित किया है: For Private And Personal Use Only
SR No.020476
Book TitleMeerabai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreekrushna Lal
PublisherHindi Sahitya Sammelan
Publication Year2007
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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