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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आलोचना खंड 5 " भली कहीं कोई बुरी कही मैं सब लई सीसि चढाइ । मीराँ कहैं प्रभु गिरधर के बिन, पल भर रह्यो न जाइ ॥ गिरधर नागर की दूसरी विशेषता है उनकी लीलाप्रियता । वे नागर हैं और सभी गोपियों से लीला किया करते हैं । सूरदास भी भगवान की लीला पर मुग्ध है; परन्तु जहाँ वे भगवान की बाल लीला, गोचारण लीला, माखनचोरी लीला तथा प्रेम प्रणय लीला सभी पर मुग्ध हैं और सबका वर्णन करते हैं, वहाँ मीराँ भगवान की प्रेम लीला .पर ही मुग्ध हैं। __ यद्यपि सभी भक्तों के भगवान बहुत कुछ समान रूप से पतितपावन और करुणानिधान हैं, फिर भी अपनी भावना और रुचि के अनुरूप भिन्नभिन्न भक्तों ने अपने भगवान में कुछ विशेष गुणों का आरोप किया है । किसी ने उनकी दीनबंधुता और भक्तवत्सलता देखी तो किसी ने उनकी लीलाप्रियता; किसी ने उनके शील और शक्ति की प्रशंसा की तो किसी ने उनके सौन्दर्य की । उदाहरण के लिए गोस्वामी तुलसीदास अपने भगवान राम के शील गुण पर मुग्ध होकर गा उठते हैं : सुनि सीतापति सील सुभाऊ । मोद न मन, तन पुलक, नयन जल सो नर खेहर खाउ । x x x x x x समुझि समुझि गुनग्राम राम के उर अनुराग बढ़ाउ । तुल सिदास अनयास राम पद, पाइहै प्रेम-पसाउ ॥ और सुदामा-चरित्र के रचयिता नरोत्तमदास अपने भगवान कृष्ण की करुणा का संदर चित्र खींचते हैं : कैसे बिहाल विवाइन सो भये, कंटक जाल गए पग जोए । हाय महादुख पाए सखा, तुम अाए इतै न कितै दिन खोए । देखि सुदामा की दीन दसा, करुना करिकै करुनानिधि रोए । पानी परात को हाथ छुए नहिं, नैनन के जल सो पग धोए । तथा अंधे कवि सूरदास को भगवान कृष्ण की लीलाएँ ही अति प्रिय हैं। इन सबसे भिन्न माराँबाई अपने गिरधर नागर के रूप और सौन्दर्य पर ही For Private And Personal Use Only
SR No.020476
Book TitleMeerabai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreekrushna Lal
PublisherHindi Sahitya Sammelan
Publication Year2007
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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