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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११६ अालोचना खंड ज्ञान पुरुष है इस कारण वह माया नारी के प्रति आकृष्ट होता है, भक्ति नारी है इसलिए वह माया नारी के प्रति आकृष्ट नहीं होती । इसी कारण भक्ति ज्ञान से सरल और श्रेष्ठ है । गुसाई जी का तर्क चाहे कोई माने या न माने, परन्तु इतना तो मानना ही पड़ेगा कि ज्ञान पुरुष है और भक्ति नारी । पुरुष को अपनी बुद्धि का बल होता है, स्त्री को हृदय का; पुरुष किसी दूसरे पर निर्भर नहीं रहता, परंतु नारी को एक अवलम्ब अवश्य चाहिए । इसीलिए जहाँ ज्ञान रूपी पुरुष अपनी बुद्धि के अभिमान में कह उठता है : अहं निर्विकल्पं निराकारूपं विभुर्व्याप्त सर्वत्र सर्वेन्द्रियाणि । सदा में समत्वं न मुक्तिनबंधः चिदानंदरूपं शिवोऽहम् शिवोऽहम् ॥ वहाँ भगवान पर अवलम्बिता भक्ति नारी गा उठती है : म्हारो जनम मरन को साथी, थाने नहीं बिसरूँ दिन राती । तुम देख्याँ बिन कल न पड़त है जानत मेरी छाती। इस भक्ति नारी का जितना सफल चित्रण मीराँ ने किया है उतना और कोई भक्त कवि नहीं कर सका। गुसाई तुलसीदास ने भक्ति को नारी तो अवश्य माना परन्तु नारी-भाव की भक्ति-भावना वे न कर सके । उनकी भक्ति भावना दास्य भाव की थी। 'मानस' में ने स्पष्ट लिखते हैं : __ 'सेवक सेव्य भाव बिनु भंव न तरिय उरगारि ।' सेवक भी अपने स्वामी पर अवलम्बित रहता है, परन्तु वह अवलम्बन ठीक उसी प्रकार का नहीं है जैसा नारी का । सेवक को अपनी सेवा का बल है और बल है अपने स्वामो की दया और करुणा. का; नारी को अपने हृदय का बल है और बल है अपनी व्यथा सहने की क्षमता और त्याग का। पहले में दीनता का भाव भरा है, दूसरे में क्षमता है, त्याग और है महानता। नारद भक्ति सूत्र में लिखा है कि भगवान् का अभिमान से द्वेष भाव है और दैन्य से प्रिय भाव ।' सम्भवतः इसीलिए भक्तों ने अपने विनय के पदों में अति दैन्य भाव प्रकट किया है। अस्तु, जब गुसाई तुलसीदास अपने भगवान से कहते हैं : १. ईश्वरस्याप्यभिमान दोषित्वाद् दैन्यप्रियत्वाच्च । नारद भक्ति सूत्र ॥२७॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020476
Book TitleMeerabai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreekrushna Lal
PublisherHindi Sahitya Sammelan
Publication Year2007
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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